गुरु रविदास जी के जीवन परिचय पर निबंध और 2023 में उनकी जयंती { Guru Ravidas Ji Biography, History On Essay, 2023 Jayanti In Hindi }
इतिहास के 15 वी शताब्दी के महान समाज सुधारक संत गुरु रविदास जी (रैदास) का जन्म एक दलित परिवार में 1376 ईस्वी से 1399 ईस्वी के बीच हुआ था। वह उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में रहते थे। इनके पिता संतो़ख दास जी जिन्हे कई लोग रग्घु जी के नाम से भी पुकारते थे। वह राजा नगर राज्य में सरपंच हुआ करते थे इनका जूते बनाने और सुधारने का काम हुआ करता था वो मरे हुए जानवरों की खाल निकालकर उससे चमड़ा बनाकर उसकी चप्पल बनाते थे।
रविदास जी अधिकतर भक्ति की भावना में ही लीन रहते थे उन्हें बचपन से ही साधू संतो के साथ रहना बहुत अच्छा लगता था, लेकिन रविदास जी भक्ति के साथ अपने काम पर विश्वास करते थे वो अपने पिता के साथ जूते बनाने का काम सीखते और पूरी मेहनत के साथ काम करते थे। रविदास जी अपनी मेहनत से लोगो की मदद करते थे।
गुरु रविदास जी का जीवन परिचय (Guru Ravidas Biography and history)
क्रमांक | जीवन परिचय बिंदु | गुरु रविदास जी का जीवन परिचय |
1. | नाम | संत गुरु रविदास जी |
2. | प्रचलित नाम | रोहिदस, रैदास |
3. | जन्म तिथि | 376-77 इसवी से 1399 के बीच माना जाता है। |
4. | जन्मस्थान | गोवर्धनपुर गांव, वाराणसी, उत्तरप्रदेश |
5. | मृत्यु | 1540 इसवी (वाराणसी) |
6. | पिता का नाम | श्री संतो़ख दास जी (रग्घु जी) |
7. | माता का नाम | श्रीमती कलसा देवी जी |
8. | पत्नी का नाम | श्रीमती लोना जी |
9. | बेटा का नाम | विजय दास जी |
10. | दादा का नाम | श्री कालू राम जी |
11. | दादी का नाम | श्रीमती लखपति जी |
12. | रविदास जी की जयंती | माघ महीने के पूर्णिमा के दिन |
13. | स्वभाव | कल्याणवादी ,समाज सुधारक,निर्गुणसंत |
14. | प्रचलित भजन | कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै। तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै। |
15. | प्रचलित दोहे | मन चंगा तो कठौती में गंगा |
16. | रविदास स्मारक | रविदास पार्क, रविदास घाट, रविदास नगर, रविदास मेमोरियल गेट आदि। |

संत रविदास जी के अनेक नाम-
संत रविदास जी को राजस्थान के लोग ‘रैदास’ के नाम से जानते थे और पंजाब के लोग ‘रविदास’ कहते थे। बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ के नाम से पहचानते थे तो गुजरात के लोग ‘रोहिदास’ के नाम से जानते थे। कुछ लोगो की मान्यता है कि माघ मास की पूर्णिमा को रविवार के दिन रविदास जी ने जन्म लिया तो उनका नाम रविदास रख दिया गया। इस तरह अलग अलग जगह पर उन्हें अलग अलग नाम से लोग जानते थे।
रविदास दास जी का स्वभाव-
रविदास जी का स्वभाव और उनके गुणों का पता उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से चलता है। एक बार की बात है त्यौहार पर आस-पड़ोस के लोग गंगा में स्नान के लिए जा रहे थे तो उनके शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने को खा तो वह बोले में गंगा-स्नान के लिए जरूर जाता परन्तु वह जाने से क्या पुण्य मिलेगा जब मेरा मन यहाँ लगा रहेगा जिस काम को करने के लिए हमारी आत्मा और मन तैयार ही ना हो वह काम करना उचित नहीं यदि मन लगे तब ही कठौते के जल में गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है।
इससे पता चलता है की उनके विचारों का अर्थ यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। ईश्वर का सच्चा भक्त वही हो सकता है जो अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करे।
बचपन से ही रविदास जी बहुत बहादुर और भगवान् को बहुत मानने वाले थे। वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। उनके गाओं में जब भी किसी को मदद की जरूरत होती तो वे निस्वार्थ होकर लोगो की मदद करते कभी कभी वो बिना पैसा लिए लोगों को जूते भी दान में दे दिया करते थे। उन्हें लोगो की सहायता करना बहुत अच्छा लगता था। यदि रास्ते में उन्हें कोई साधु-संत मिल जाएं तो वे उनकी सेवा करने लग जाते थे। उनका स्वाभाव बहुत ही विनम्र और दयालु था। इसी कारण लोग उनके अनुयायी बनने लग गए।
गुरु रविदासजी का वैवाहिक जीवन-
Guru Ravidas Ji का भगवान् के प्रति इतना घनिष्ट प्रेम और सच्ची भक्ति के कारण वो अपने परिवार, व्यापार और माता-पिता से दूर होते जा रहे थे। यह देख कर उनके माता-पिता ने उनका विवाह श्रीमती लोना देवी से करवा दिया और उनसे उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम विजय दास रखा।
विवाह के बाद भी वह अपने परिवार के व्यापार में सही तरीके से ध्यान नहीं दे पा रहे थे। यह देख कर उनके पिता ने उन्हें घर से निकल दिया ताकि वह अपने सामाजिक कार्य बिना किसी की मदद लिए कर सके। इसके बाद वह अपने घर के पीछे रहने लगे और अपने सामजिक कार्यों को करने लगे।
रैदास की वाणी भक्ति की से श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी की उन्हें अपनी समस्याओ का समाधान मिल जाता था और लोग उनके अनुयायी बन जाते थे।
गुरु रविदासजी की शिक्षा | Education of Guru Ravidas Ji
रविदास जी जब बचपन मे अपने गुरु, पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में जाया करते थे तो उनके गांव के कुछ उच्च जाति के लोगों ने उन्हें वहा पढ़ने से मना कर दिया परन्तु उनके विचारों प्रतिभा को देखकर पंडित शारदा नन्द को यह यकीन हो गया था कि रविदासजी बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और वो आगे जाकर एक अच्छे आध्यात्मिक गुरु और महान समाज सुधारक बनेगे। रविदास जी बहुत ही बुद्धिमान बच्चे थे और पंडित शारदा नन्द से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह बहुत महान समाज सुधारक बने गए। रविदास जी के साथ पाठशाला में पंडित शारदा नन्द जी का बेटा भी पढ़ता था, वे दोनों अच्छे मित्र थे एक बार वे दोनों छुपन छुपाई का खेल रहे थे।
एक दो बार खेलने के बाद रात हो गई, जिससे उन लोगों ने अगले दिन खेलने की बात कही जब दुसरे दिन सुबह रविदास जी खेलने आये तो उनका मित्र उन्हें वहाँ दिखाई नहीं देता तब वो उसके घर चले गए वहां जाकर उन्हें पता चला कि रात को उसके मित्र की मृत्यु हो गई और ये सुन रविदास जी सुन्न पड़ जाते है।
रविदास जी को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां मिली हुई जब उनके गुरु शारदा नन्द जी उन्हें मृत मित्र के पास ले जाते है तो वे अपने मित्र से कहते है कि ये सोने का समय नहीं है, उठो और मेरे साथ खेलो तो ये यह शब्द सुनते ही उनका मृत दोस्त जीवित हो गया। ये देख वहां मौजूद हर कोई अचंभित हो जाता है और इस तरह कई लोग उनके ऐसे चमत्कार देख कर उनके अनुयायी बन गए और उन्हें पूजने लगे।
रविदास जी की मृत्यु ( Sant Ravidas Death )
गुरु रविदास जी की सच्चाई, मानवता, भगवान् के प्रति प्रेम, सद्भावना देख, दिन पे दिन उनके अनुयाई बढ़ते जा रहे थे। दूसरी तरफ कुछ ब्राह्मण उनको मारने की योजना बना रहे थे। रविदास जी के कुछ विरोधियों ने एक सभा का आयोजन किया, उन्होंने गाँव से दूर सभा आयोजित की और उसमें गुरु जी को आमंत्रित किय।
गुरु जी उन लोगों की उस चाल को पहले ही समझ जाते है जब गुरु जी वहाँ जाकर सभा का शुभारंभ करते है तो गलती से गुरु जी की जगह उन लोगों का साथी भल्ला नाथ बैठ जाता और वो मारा जाता जब गुरु जी थोड़ी देर बाद अपने कक्ष में शंख बजाते है, तो सब अचंभित हो गए। अपने साथी को मरा देख रविदास जी बहुत दुखी हो गए और दुखी मन से गुरु जी के पास चले गए।
रविदास जी के अनुयाईयों का मानना है कि रविदास जी 120 या 126 वर्ष बाद अपने आप शरीर को त्याग देते है। माना जाता है की उन्होंने वाराणसी में 1540 ईस्वी में अपना शरीर स्वय ही समर्पण कर दिया। कुछ लोगो मानना है की वे चित्तौड़गढ़ से स्वर्गारोहण कर गए थे और चित्तौड़ में ही संत रविदास की छतरी बनी हुई है।
रविदास जी के दोहे, कोट्स ( Guru Ravidas Ji Dohe, Quotes )

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”

“रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात”

“मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊँ सहज सरूप”

“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात”
गुरु रविदासजी और बेगमपुर शहर Guru Ravidas Ji and Begumpura City-
बेगमपुरा शहर से रविदास जी का गहरा संबंध था क्योंकि यह शहर बहुत शांति और मानवता से जुड़ा शहर था। बेगमपुरा शहर को उनकी कविता लिखते समय उनके द्वारा आदर्श रूप दिया गया था जहाँ उन्होंने वर्णन किया था कि बिना किसी कष्ट, पीड़ा, या भय और एक भूमि के साथ एक शहर जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव, गरीबी और जाति अपमान के समान हैं। एक ऐसी जगह, जहाँ सब लोग मिलकर रहते है , कोई चिंता नहीं है ,किसी को , कोई आतंक नहीं है,कोई भी किसी को कर नहीं देता है।
गुरु रविदास जी का मीरा बाई से संबंध-
मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोड़ की रानी थी। बचपन में मीरा बाई की माता के देहांत के बाद इनके दादा ने ही उनकी परवरिश की। दादाजी को दुदा जी भी कहते थे जो रविदास जी के अनुयायी थे। मीरा बाई अपने माँ बाप की एकलौती संतान थी। मीरा बाई अपने दादा जी के साथ हमेशा रविदास जी से मिलती रहती थी। जहाँ वे उनकी शिक्षा से बहुत प्रभावित हुई। शादी के बाद मीरा बाई ने अपनी परिवार की आज्ञा से रविदास जी को अपना गुरु बना लिया। उनकी शिक्षा से प्रभावित हो कर वो उनकी अनुयायी बन गई थी। कई लोगो का मानना हे की रविदास जी ने कई बार मीराबाई को मृत्यु से बचाया था।
रविदास जी के लिए मीराबाई ने लिखा हे वह यह है-
“गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी”
“मीरा सत गुरु देव की करै वंदा आस”
“जिन चेतन आतम कहया धन भगवन रैदास”
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संत रविदास का मंदिर और लोगो की आस्था–
वाराणसी में संत रविदास का मंदिर और मठ बना है। लोग उन्हें बहुत भक्ति के साथ पूजते है और उनकी पूजा करते है। बहुत दूर दूर से लोग मंदिर के दर्शन करने के लिए आते है और वह रविदास जी की भक्ति में लीन हो जाते है।
इसके अतिरिक्त श्री गुरु रविदास जी के नाम पर पार्क भी बना है जो उनकी यादगार के लिए बनाया गया है। कई जगह उनके स्मारक बने हुए है जो उनकी भक्ति के प्रतिक है।
संत गुरु रविदास जी के 41 पवित्र लेख जो गुरु ग्रन्थ साहिब में उल्लेख किये गए है–
सीरी –1 | गौरी –5 | असा –6 |
गुजारी –1 | सोरथ –7 | धनासरी –3 |
जैतसरी –1 | सूही –3 | बिलावल –2 |
गौंड –2 | रामकली –1 | मरू –2 |
केदार –1 | भैरू –1 | बसंत –1 |
मल्हार –3 |
गुरु रविदास जी की जयंती और अवकाश 2021, 2022, 2023, 2024 व 2025
रविदास जयंती माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल रविदास जी की जयंती 29 फरवरी 2023, में मनाई जाएगी, जो उनका 644 वा जन्म दिवस होगा । वाराणसी में इनके जन्म स्थान पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। जहाँ लाखों की संख्या में उनके भक्त वहां पहुँचते है। कई अनुयाई इस दिन पवित्र नदी में स्नान करते है, और फिर रविदास की प्रतिमा की पूजा करते है। रविदास जयंती मनाने का उद्देश्य यही है, कि गुरु रविदास जी की शिक्षा को याद किया जा सके,उन्होंने जो लोगो को भाईचार और शांति की सीख दी हे उसे लोग अपने जीवन में उतार सके।
Guru Ravidas Ji Jayanti and Holiday In India:-
जन्म दिवस | दिनांक | वार | वर्ष | अवकाश | राज्य |
---|---|---|---|---|---|
644 | 27-फरवरी | शनिवार | 2021 | गुरु रविदास जयंती | हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब |
645 | 16-फरवरी | बुधवार | 2022 | गुरु रविदास जयंती | हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब |
646 | 5-फरवरी | रविवार | 2023 | गुरु रविदास जयंती | हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब |
647 | 24-फरवरी | शनिवार | 2024 | गुरु रविदास जयंती | हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब |
648 | 12-फरवरी | बुधवार | 2025 | गुरु रविदास जयंती | हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब |
संत रविदास जयंती का महत्व-
संत रविदास जयंती के लिए हम सब मिलकर इस जयंती को मनाने के लिए एक जुट हो जाते है और सब साथ मिलकर उनकी पूजा अर्चना करते है उनके भजन गाते है और उनके दोहे पढ़ते है सड़को पर रैली निकलते है। उन्हें याद करके हमे इस बात का बोध होता है की समाज में जाती के नाम पर ऊंच -नीच का भेदभाव नहीं करना चाहिए और सबको मिलजुलकर रहना चाहिए। संत रविदास जयंती हमे उनके सिखाये हुए मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है।
गुरु रविदास जी और ब्रहामणों की कहानी –
एक समय की बात है जब गुरु रविदासजी को नरेश के दरबार में बुलाया और उन पर ये आरोप लगाया की वो कोई संत नहीं है बल्कि ढोंग कर रहे है और उन्हें भगवान की मूर्ति छूना तो दूर भगवान् की पूजा भी नहीं करनी चाहिए। राजा ने दोनों को मूर्ति लेकर गंगा नदी के तट पर बुलाया जब वो दोनों मूर्ति लेकर गंगा नदी के तट पर आये तो राजा ने कहा- जिसके हाथ से भगवान की मूर्ति पानी में डूबने के बजाय तैरेगी वही भगवान का सच्चा भक्त है। सबसे पहले ब्रहामणों ने अपना मूर्ति पानी में डाला तो मूर्ति झट से पानी में डूब गयी ।
उसके बाद गुरु रविदासजी ने ठाकुर जी के मूर्ति को धीरे से पानी में छोड़ा और वो तैरने लगी ।यह चमत्कार देख कर गुरु रविदास जी के भक्त बन गए और उनके पैर छूने लगे और उस दिन के बाद लोग उन्हें मानने लग गए और उनका सम्मान करने लग गए।
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संत गुरु रविदास जी के सामाजिक कार्य-
संत रविदास ने समाज में जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए अपने भजन, दोहों के माध्यम से सामाजिक एकता पर बल दिया और उन्होंने मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। संत गुरु रविदास जी ऐसे समाज की कल्पना करते है जहां किसी भी प्रकार का ऊंच-नीच, जात-पात, दुःख-सुख, लोभ-लालच का भेदभाव नहीं किया जाता है। रविदासजी जी लिखते है कि-
‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच,
नर कूं नीच कर डारि है,
ओछे करम की नीच’
यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने जन्म से नीच नहीं होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति कर्म के हिसाब से नीच होता है।
गुरु रविदास जी का सिद्धांत | Principle of Guru Ravidas Ji–
- भगवान एक है और अत्यंत शक्तिशाली है।
- ईश्वर का एक कण मनुष्य की आत्मा है।
- भगवान निचली जाति के लोगों को नहीं मिल सकते है ऐसी धारणा पर विश्वास नहीं करना।
- ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करना।
- मनुष्य की मृत्यु निश्चित है।
संत रविदास की रचनाएं –

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा।
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी।

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करै रैदासा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।
गुरु रविदास जीवनी का निष्कर्ष-Conclusion
गुरु रविदास (Sant Guru Ravidas Ji) एक महान संत थे। रविदास जी ने ऊंच-नीच, जात-पात का भेदभाव मिटाने के अत्यंत प्रयास किये और वो प्रयास सफल भी हुए। वे दलित वर्ग के लोगों को समाज में सम्मान दिलाने और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। जिसके कारण उनका सम्मान किया जाने लगा। ईश्वर से मिली अद्भुत शक्तियां उन्होंने समाज के कल्याण में लगा दी। अतः हम भी उनके सिखाये हुए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बना सकते है।
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