
विक्रम बेताल की दूसरी कहानी – स्त्री का पति कौन?:
कुछ सालों पहले जमुना किनारे धर्मपुर नाम का नगर था उस नगर मैं धर्मवीर नाम राजा रहता था उस राजा की कोई संतान नहीं थी। एक दिन राजा का अनुयाई राजा को एक बात बोलता है कि महाराज आप अपने महल के अंदर एक मंदिर बनाइए और उस मंदिर में माताजी की स्थापना कीजिए और पूजा पाठ प्रतिदिन कीजिए। बड़ा पुण्य मिलेगा। राजा वैसा ही करता है जैसा उसका अनुयाई कहता है।
एक दिन राजा पूजा कर रहा होता है तभी अचानक मां दर्शन देती है और कहती है कि हे भक्त बताओ तुम्हें क्या चाहिए मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं।
राजा मां से कहता है कि- हे मां मेरी कोई संतान नहीं है मुझे बस एक संतान चाहिए। मां राजा को आशीर्वाद देती है संतान का और वहां से अंतर्ध्यान हो जाती है। कुछ दिनों बाद राजा की पत्नी को एक लड़का होता है।
उसी शहर में एक ब्राह्मण है तथा इसका नाम विष्णु दत्त था उसकी एक सुंदर और सुशील बेटी थी, उसकी बेटी की शादी की उम्र हो गई थी और विष्णु दत्त और उसका पूरा परिवार अपनी बेटी के लिए एक लड़का ढूंढ रहे थे।
एक दिन विष्णु दत्त किसी के घर पूजा पाठ करने केटली गए थे उस समय उसके घर में उसकी धर्मपत्नी और उसकी बेटी अकेले ही थे। उस समय उनके घर एक लड़का आता है और विष्णु दत्त की पत्नी उस लड़के से पूछती है कि आप यहां कैसे आए हो और काम से आए हो।
तभी वह तड़का विष्णु दत्त की पत्नी से कहता है कि मैं भूखा हूं और मुझे भूख लगी है मैं एक ब्राह्मण का बेटा हूं। विष्णु दत्त की पत्नी उस लड़के का सत्कार करती है और उसे प्यार से खाना खिलाती है और वहां देखती है कि लड़का बहुत ही अच्छा है और अच्छे परिवार से हे। लड़का विष्णु दत्त की पत्नी को लड़का पसंद आता है और उसे वादा करती है कि अपनी बेटी की शादी उसी से करवाएगी।
दूसरी तरफ विष्णु दत्त किसके घर पूजा पाठ करने गए कुत्ते हैं वह घर भी किसकी बामण का होता है और उस घर में एक लड़का मिलता है लड़का बहुत ही साधारण और सुशील स्वभाव का लगता है विष्णु दत्त को लड़का पसंद आता है और विष्णु दत्त उस लड़के को अपनी बेटी की शादी उसी के साथ करने का वचन देता है। विष्णु दत्त की बेटी बाहर पढ़ने जाती थी वह भी किसी और से अपनी शादी का वादा करती है, शाम को जब विष्णु दत्त अपने साथ उस लड़के को लेकर घर आते हैं तभी उसकी बेटी भी अपने साथ एक लड़के को लेकर आती है।
विक्रम बेताल की कहानी भाग 2
दोनों जब अपने घर में किसी और लड़के को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। दूसरी तरफ विष्णु दत्त की धर्मपत्नी अपने पतिदेव के साथ लड़के को देखकर और अपनी बेटी के साथ लड़के को देखकर वह भी परेशान हो जाती है जब तीनों एक दूसरे को बात बताते हैं तो सब बहुत परेशान हो जाते हैं और विचार करते हैं कि अब क्या करें और इसका ब्याह किसके साथ कराएं।
तभी उनकी बेटी बाहर कुछ लेने चली जाती है और विष्णु दत्त और उसकी पत्नी और वह तीनों लड़के घर पर बातें कर रहे होते हैं।
तभी थोड़ी देर बाद उनका पड़ोसी उनके घर पर आता है और कहता है कि आपकी बेटी को पास में एक कोबरा सांप ने काट लिया है और चला जाता है तभी सारे परिवार वाले यह खबर सुनकर दौड़े चले जाते हैं और देखते हैं कि उनकी बेटी की मृत्यु हो गई होती है।
यहां देख कर सारा परिवार बहुत दुखी होता है और लड़के भी बहुत मायूस हो जाते हैं। और गांव वाले और परिवार वाले मिलकर उसका दाह संस्कार करते हैं लड़की के दाह संस्कार के बाद एक लड़का अपने साथ उसकी हड्डियां लेकर दूर एक जंगल में चला जाता है।
दूसरा लड़का उसकी राख़ को लेकर उसी जगह एक झोपड़ी बनाकर रहता है। तीसरा लड़का वहाँ से निकलकर उसकी याद में साधु बनकर अलग-अलग देश में घूमने लगता है और ऐसा होते हुए बहुत वर्ष बीत जाते हैं एक दिन अचानक साधु बनकर घूम रहा वह लड़का किसी के घर जाता है और उसे मालूम होता है कि यह घर किसी ब्राह्मण का है। और वह घर किसी तांत्रिक योगी का होता है साधु को घर में पाकर वह तांत्रिक बहुत खुश होता है और उसका स्वागत सत्कार करता है तांत्रिक ने उस साधु से कुछ दिन अपने घर रहने के लिए उसको बोला। उस साधु ने मना किया पर तांत्रिक की ज़िद देखकर रहने का फैसला किया।
एक दिन तांत्रिक अपने तांत्रिक विद्या करने में बहुत व्यस्त था और उसकी धर्मपत्नी सबके लिए भोजन बना रही थी तभी उसका छोटा बच्चा रोने लगता है उसकी धर्मपत्नी को बहुत परेशान करता है उसकी पत्नी उस बच्चे से बहुत परेशान हो जाती है और उसे चुप कराने की बहुत कोशिश करती है लेकिन बच्चा जिद पर अड़ा रोने लगता है तभी उस बच्चे की मां को गुस्सा आता है और उसकी पिटाई करती है उसके बाद भी बच्चा नहीं मानता है तो बच्चे को आग में जला देती है यहां सब साधु देख रहा होता है वहां बहुत परेशान वह दुखी होता है और वहां से बिना कुछ भोजन किए अपनी सामग्री को लेकर घर से चलने लगता है।
इसी समय तांत्रिक आता है और साधु से कहता है कि यजमान आप भोजन कीजिए भोजन तैयार है आप इस तरह से यहां से मत प्रस्थान कीजिए। गुस्से में साधु ने बोला- मैं इस जगह एक पल भी नहीं रुक सकता हूं, जिस जगह ऐसी एक डाकण औरत रहती हो।
उस जगह मैं कैसे भोजन ग्रहण कर सकता हूं। ऐसी बातें सुनकर तांत्रिक रसोई घर में जाता है और नजारा देखकर हैरान रह जाता है। और वहां अपने थैले से एक किताब बाहर निकालकर मंत्र उच्चारण करता है और उस बच्चे को जीवित कर देता है और यह सब वह साधू देख रहा होता है और हैरान हो जाता है। साधु मन में विचार करता है कि यहां किताब मेरे को मिल जाए तो मैं अपनी होने वाली पत्नी को फिर से जीवन दे सकता हूं साधु यह सोच रहा होता है और तांत्रिक उस साधु से कहता है कि यजमान अब आप भोजन ग्रहण कीजिए और खाने का आग्रह अनुरोध करता है तब साधु भोजनग्रहण करता है और वही थक जाता है।
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साधु के मन में वही बात घूम रही होती है कि मुझे वह किताब हासिल करनी है और विचार करते-करते रात हो जाती है और सब सो जाते हैं मध्य रात्रि को साधु उस तांत्रिक वाली किताब को लेकर तांत्रिक के घर से वही शमशान रात चला जाता है जिस जगह पर उसकी होने वाली धर्मपत्नी का अंतिम संस्कार किया गया था। साधू उस शमशान के पास झोपड़ी बनाकर रह रहे लड़के के पास जाता है और उसे सारी आप बीती सुनाता है और दोनों उस तीसरे लड़के को ढूंढने निकल पढ़ते हैं।
जब वह तीसरा लड़का मिल जाता है तो साधु और लड़का उस तीसरे लड़के को पूरी कहानी सुनाते हैं और वह उस लड़की की हड्डी और राख लेकर आओ मैं उसे जीवित करूंगा।
वे दोनों ऐसा ही करते हैं और उस लड़की की राख और हड्डियां एकत्रित करने के बाद उस जगह जाते हैं जहां पर उसका अंतिम संस्कार किया था। साधु मंत्र पड़ता है और वह लड़की जीवित हो जाती है यह देख कर तीनों ब्राह्मण बहुत खुश होते हैं खुशी से फुले नहीं समा रहे होते हैं।
इतनी कहानी बेताल राजा विक्रमादित्य को सुनाता है और चुप हो जाता है और कुछ देर बाद राजा से पूछता है।
महाराज बताओ की वह लड़की किसकी पत्नी हुई? महाराज को डर होता है कि फिर से वह पिशाच कहीं उड़ ना जाए। गुस्से में पिशाच बोलता है कि अगर आपने नहीं बताया तो मैं आपकी गर्दन धड़ से अलग कर दूंगा। इतना सुनते महाराज विक्रमादित्य कहते हैं कि -“जो ब्राह्मण लड़का उस कुटिया में रह रहा होता है उसकी पत्नी हुई”।
पिशाच बोलता है कैसे? जब महाराज बोलते हैं कि “जो हड्डी चुनकर फकीर बना । इसलिए वह उसका बेटा हुआ”
और जिसने उसको मंत्र विद्या से जीवित किया वो पिता के बराबर हुआ और जो ब्रामण लड़का “जिसने राख के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा तो वह उसका पति हुआ”।
राजा की बात सुनकर पिशाच – “राजा आपने सही फरमाया लेकिन अपनी बात से आपको अपना मुंह नहीं खोलना था। इतना कहते हैं वह फिर से उड़कर पेड़ पर लटक जाता है। राजा फिर से उसे पकड़ कर अपने कंधे पर लादकर चल देते हैं।
इस कहानी से यह सिख से मिलती है।
अपनी बुद्धि से और चतुराई से किसी भी समस्या का निवारण किया जा सकता हैं।