
धर्म पत्नी किसकी?: एक बार फिर राजा विक्रम, पिशाच को पेड़ से उतारकर योगी के पास ले जाने के लिये आगे बढ़ने लगते है। इस दौरान पिशाच राजा विक्रम को एक कहानी सुनाने लगता है और शर्त वही होती है, राजा विक्रम ने अपना मुंह खोला तो वो उड़ जाएगा और जवाब पता होते हुए भी नहीं बताया तो राजा विक्रम की गर्दन को अलग कर देगा। पिशाच राजा विक्रम को कहानी सुनाता है…बहुत वर्षों पहले की बात हे भरत देश के अंदर एक चंदनपुर नाम का एक नगर था। चंदनपुर में नरेश राजा का राज करता था।
राजा नरेश बहुत वीर और बलवान था। अपनी शादी के बहुत सालों के बाद अपनी धर्म पत्नी प्रभा को एक बेटी शशिप्रभा हुई। शशिप्रभा समय के साथ-साथ वह बड़ी होती हे, शशिप्रभा की सुंदरता की बाते हर जगह होती थी। एक दिन राजा नरेश अपनी पत्नी प्रभा और बेटी शशिप्रभा के साथ अपने राज मे बसंत उत्सव देखने के लिए अपने राज मे जाते हे। अपने राज मे बसंत उत्सव देखने राज की प्रजा भी आई होती हे उसी बसंत उत्सव में एक धनी ब्राह्मण का बेटा मानव भी देखने आया था।
उसने उस उत्सव में राजा नरेश की बेटी शशिप्रभा को देखा तो वह उसे देखता ही रह जाता हे ओर उसे अपनी एक नजर में शशिप्रभा प्यार हो जाता हे।उसी समय एक हाथी तेजी से दौड़कर राजकुमारी शशिप्रभा की तरफ आने लगा। शशिप्रभा के साथ वाले तैनात सभी सिपाही उस पागल मतवाले हाथी से डर के भाग गए। ब्राह्मण का पुत्र मानव ने जैसे ही उस हाथी को राजकुमारी शशिप्रभा की ओर जाते देखा, तो उसने अपनी जान की बाजी लगाकर शशिप्रभा को बचा लिया। यह सब नजारा देखकर राजकुमारी शशिप्रभा उस ब्राह्मण मानव पर मोहित हो जाती हे।
विक्रम बेताल की छठवीं कहानी
ब्राह्मण का बेटा मानव की सब ने वहा तारीफ की और सब जन बसंत उत्सव देखने के बाद अपने-अपने घर लौट आते हे ।राजमहल में आते ही शशिप्रभा का बुरा हाल था। जिसने अपनी जान की बाजी लगाकर उसे बचाया वह उस ब्राह्मण की याद में खोई रहती हे। दूसरी ओर मानव भी शशिप्रभा से फिर मिलने के लिए व्याकुल था। राजकुमारी शशिप्रभा से मुलाकात कैसे होगी क्या करू, यह सोचने के बाद वह एक सिद्धपंडित के पास चला जाता हे।
मानव ने अपने मन की सारी बात उस को बताई ओर हल के बारे मे उपाय पुछा। सिद्धपंडित ने सिद्धि के अनुसार अपने बल पर दो चूर्ण की गोली बनाई। एक चूर्ण की गोली उसने ब्राह्मण मानव को दी उसे अपने मुंह में रखने को कहा । मानव के मुंह में चूर्ण की गोली रखते ही मानव एक युवती बन गया।
सिद्धपंडित ने दूसरी चूर्ण की गोली अपने मुंह मे रख ली और वो एक ब्राह्मण के रूप में हो गया।सिद्धपंडित, मानव को लेकर राजमहल पहुंच जाता हे । उसने राजा नरेश से बोला, “ यह लड़की मेरे एकमात्र बेटे की होने वाली पत्नी है। आप बेटी को अपने यहा कुछ समय के लिए राजमहल में रख लीजिए, क्योंकि मुझे तीर्थ पर जाना है। ओर यह राजमहल से ज्यादा अच्छी वह सुरक्षित और कही नहीं रह सकती हे।” राजा नरेश ने मन मे सोचा कि वो मना करेगा तो यह सिद्धपंडित उसे कुछ श्राप भी दे सकता है।
राजा नरेश ने कहा, “हे ब्राह्मण देवता आप बिना कोई फिकर किए जाइए, आपके बेटे की धर्मपत्नी हमारे महल मे सुरक्षित रहेगी। मेरी बेटी शशिप्रभाके साथ दोस्त की तरह रहेगी।”राजा की बात सुनने के बाद सिद्धपंडित महल से निकल जाता हे और मानव लड़की के रूप में शशिप्रभा के साथ रहने लगता हे। उसकी दोस्त की तरह रहकर वो शशिप्रभासे बहुत बातें करता।
एक दिन वह मौका पाकर शशिप्रभा से मानव ने उससे पूछा, “आप हमेशा इतनी दुखी वह परेशान क्यों रहती हैं ? आपकी आंखो मे हर समय आँसू ओर आपकी आंखे किसको ढूंढती रहती हैं? ये बात सुनते ही राजकुमारी शशिप्रभा ने उत्सव वाले दिन हुई घटना के बारे मे उसे बताते हुए कहा, “वो युवक मेरे मन मे समा गया है। मुझे उसका कोई नाम पता मालूम नहीं है।
मैं हर समय उसी के बारे मे सोचती रहती हूं कि उससे मुलाकात कैसे होगी।” शशिप्रभा की उसके मन की बात जानकर स्त्रीरूप में मानव बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने राजकुमारी शशिप्रभा से कहा, “ दोस्त में तुम्हें उस युवक से फिर मिला सकती हूं।” इतनी बात सुनते ही प्यार में बेचैन शशिप्रभा ने कहा, “ जल्दी बताओ कैसे ? क्या तुम उस पुरुष को जानती हो।” तब मानव ने कहा, “तुम अभी अपनी आंखें बंद करो ।” जैसे ही शशिप्रभा ने आंखें बंद की, युवक ने जल्दी से मुंह से चूर्ण की गोली बाहर निकाल ली। और वापस लड़के के रूप में आ जाता हे।
धर्म पत्नी किसकी? – भाग 6
मानव ने बड़े प्यार से शशिप्रभा को आवाज लगाई ।मानव की आवाज को सुनकर शशिप्रभा को बड़ी खुशी हुई और अपनी आंखे खोलकर मानव को खुशी से उसे अपने गले लगा लिया।”राजकुमारी शशिप्रभा ने मानव से पूछा, “अरे ! मेरी वह दोस्त कहा चली शशिप्रभा बात की सुनते ही मानव ने सारी बात शशिप्रभा को बताई और चूर्ण की गोली अपने मुंह में डाल दी वह फिर स्त्री बन जाता हे । यह देखकर राजकुमारी शशिप्रभा हैरान रह जाती और मन ही मन बहुत प्रसन्न भी हुई। ओर वो दोनों ने एक दूसरे पति-पत्नी मान लिया और राजमहल में साथ रहने लगे।एक दिन राजा नरेश के सेवादार का बेटा मानव को देखता हे । युवक के लड़की के रूप को देखकर वो उसके ऊपर मोहित हो जाता हे।
कुछ समय बाद उसने उस लड़की से अपने मन की बात बताई, लेकिन मानव ने उसे मना कर दिया। उसने बोला की वो किसी ओर की अमानत हे ।” लड़की की बात सुनते ही पुरुष दंग रह जाता हे । उसने अपने घर जाकर अपने पिता को अपने मन की सारी बात बताई। अपने बेटे का दुख उसे देखा नहीं गया वह सेवादार जाकर वह सारी बात राजा नरेश से कहता हे । सेवादार की बातें सुन राजा नरेश ने सेवादार के बेटे और लड़की रूप अपनाए हुए मानव की शादी कराने का फैसला किया।राजा का यह फैसला सुनने के बाद मानव बोला, “ हे महाराज ! आपको इस बात का पता है, मेरी शादी किसी और से होने वाली है। ऐसा करना आपको अच्छा लगेगा यह धर्म के विरुद होगा। फिर भी आप मेरी शादी करवाना चाहते हे तो मे आपका आदेश मानने को तैयार हु मैं यह शादी कर लूंगी।” राजा नरेश बहुत खुश होते हे। दोनों की शादी करवा देते हे।
शादी होते ही मानव ने सेवादार के पुत्र से बोला , “तुम्हारी इस जिद की कारण मेरी शादी तुम्हारे साथ हुई है , वरना मैं तो किसी और से शादी करने के लिए इस राज्यमहल में आई थी। अब तुम्हें अपने इस पाप से मुक्त होने के लिए यात्रा करनी चाहिये तुम्हें जाना होगा।”अपने प्यार में पागल हुए सेवादार का पुत्र वेसे ही करता है।एक दिन वह सिद्धपंडित फिर दोबारा ब्राह्मण के रूप में राजमहल मे पहुंचता है। इस बार अपने साथ एक जवान को अपने बेटे के नाम से उसे लेकर लाता है।
ब्राह्मण राजा से कहता है की, “मेरी अपनी इस बेटे की बहू कहा है, मैं उसे आज लेने आया हु ओर अपने साथ ले जाना चाहता हूं और अपने बेटा की शादी उससे करवाउंगा।” इतना बात सुनते ही राजा नरेश ने उसे सारी कहानी बताई दी। सिद्धपंडित बहुत गुस्सा हो जाता हे। राजा ने उसके श्राप के डर से बचने के लिए उसे कहा, “देखो, जो हो गया उसे अब हम नहीं बदल सकते हे। हां, मैं एक काम कर सकता हु अपनी बेटी शशिप्रभा की तुम्हारे बेटे से शादी जरूर करवा सकता हूं यह काम कर सकता हु मे।
”राजा की बात सुनते ही सिद्धपंडित बात पर सहमत हो जाता हे और राजा नरेश ने सिद्धपंडित के सखा, जो उसके बेटे के रूप में अपने राज महल पहुंचा था, उससे अपनी बेटी शशिप्रभा की शादी अग्नि के सामने उसे साक्षी मानकर करवा देता हे। तभी उसी बीच मानव भी वहां अपने असली रूप मे यानी पुरुष रूप में चला जाता है और शशिप्रभा को अपनी धर्म पत्नी कहता है। ओर बेताल राजा को कहानी सुनाना बंद कर देता हे। उसने राजा से कहा, “राजा तुम बताओ, शशिप्रभा किसकी धर्म पत्नी है ?” राजा विक्रम ने कोई भी जवाब नहीं दिया।
गुस्से में आकर बेताल ने राजा से कहा, “जवाब दे रहे हो या तुम्हारी गर्दन अलग कर दूं।” कुछ देर बाद राजा विक्रम कहते हैं, “शशिप्रभा उस की धर्म पत्नी है, जिससे अग्नि को साक्षी माना ओर उस से विवाह किया था। मानव महल में अपना रूप बदलकर रह रहा था। और गलत मार्ग अपनाकर शशिप्रभा से मिलता था।” राजा का जवाब सुनकर बेताल बोला , “तुमने राजा सही बता दिया है, इतना कहकर बेताल उसे शर्त की बात बता कर वह से उड़ जाता हे ।” ओर बेताल जाकर दुबारा पेड़ पर उल्टा लटक जाता है।राजा उसे लेने फिर से चल देते हे।
धर्म पत्नी किसकी? कहानी से सीख: गलत राह से हमेशा किया गया प्रयास असफलता का कारण होता है।
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