शान्तशील योगी की कथा?: लगातार चोबीस बार प्रयास के बाद, आखिर में राजा विक्रम उस मुर्दे के शव को श्मशान में ले जाने में सफल हो जाते हैं और फिर बाद में शव को बेताल भी त्याग देता है। आगे कहानी में क्या हुआ जब विक्रमादित्य उस मुर्दे के शव को लेकर उस योगीपुरुष के पास गये। फिर क्या होता है ?
महाराज विक्रमादित्य और उनके अपने कंधे पर उस मुर्दे के शव को देखकर वह योगी पुरुष बहुत प्रसन्न हुआ। उसने अपनी खुशी व्यत करते हुए राजाविक्रम से कहा, “हे महाराज, आपने मेरे इस कठिन काम को करके अपनी महानता को साबित कर दिया ओर आप सबसे श्रेष्ठ सभी राजाओं में आप हैं।” यह बात कहते हुए उस योगी ने राजाविक्रम के कंधे से मुर्दे का शव उतारा और उसे अपनी तंत्र विद्या के लिए उसे तैयार करने में जुट गया । जब उस योगी की तंत्र विद्या हो गई तो राजा से उसने कहा, “हे महाराज, अब आप प्रणाम करें यहा लेटकर।” योगी की बात सुनते ही राजाविक्रम को बेताल की कही गई बात याद आ जाती है।
विक्रम बेताल की अंतिम कहानी भाग-25
राजा ने उस योगी पुरुष को कहा, “ऐसा करना मुझको नहीं आता, इसलिए मुझको पहले आप कर के बता दें, बाद में फिर ऐसा कर लूंगा।”राजा की बात सुन के जैसे ही योगीपुरुष उस शव को प्रणाम करने के लिए निचे झुका, ओर राजा ने योगी का सिर अपनी तलवार से काट दिया। यह सब नजारा देखकर बेताल प्रसन्न हुआ और उसने राजा से बोला, “महाराज यह योगीपुरुष राजा बनना चाह रहा था वह भी विद्वानों का। लेकिन आप राजा बनोगे विद्वानों के।
मैंने आपको बहुत सताया ओर परेशान भी बहुत किया, अब आपको जो भी चाहिए मेरे से मांग लो।”यह बात सुनते ही राजाविक्रम ने उसे बोला, “अगर आप प्रसन्न हैं तो मैं चाहता हूं कि आप के द्वारा मुझे सुनाई गई चौबीस कहानियां, उनके साथ यह अंतिम पच्चीसवीं कहानी पूरी संसार में प्रसिद हो और हर कोई इंसान इन्हें पढ़ें अपने आदर के साथ।
विक्रम बेताल की 25वीं कहानी
”बेताल ने राजा की बात सुनते ही बोला, “महाराज ऐसा ही होगा जेसी आपकी इच्छा, ये अंतिम कहानियां इस नाम से जानी जाएंगी ‘बेताल-पच्चीसी’ के और जो भी इंसान इन्हें ध्यान से सुनेगा वह पढ़ेगा, उनके सारे पाप हमेशा खत्म हो जाएंगे। ”बेताल वहा से इतनी बात बोलकर चला गया और जाने के बाद तभी भगवान भोलेनाथ ने राजाविक्रम को दर्शन दिए। प्रकट होकर भोलेनाथ ने राजा विक्रम से कहा, “आपने इस महान दुष्ट योगी पुरुष को मारकर इस जगत मे एक नेक काम किया है।
सात द्वीपों समेत पाताल और पृथ्वी अब तुम जल्द ही राज करोगे। इन सभी चीजों से अगर जब तुम्हारा मन भर जाए तो मेरे पास तुम चले आना।” इतना बात राजा से कहकर शिवजी अन्तर्धान हो गये । उसके बाद राजाविक्रम अपने राज्य में गए और वहां जब प्रजा को राजाविक्रम की वीरता वह साहस के बारे में जाना तो सभी ने राजाविक्रम की बहुत प्रशंसा की और अपने राज्य मे खुशियां मनाई। कुछ ही समय के बाद राजा विक्रम धरती और पाताल लोक के महाराजा बन गये। जब वहा से राजा का मन भर गया, तो वे भगवान भोलेनाथ के पास चले गए।
शान्तशील योगी की कथा कहानी से सीख:
जीत कभी बुराई की नहीं होती है। मन साफ और धैर्य हो तो व्यक्ति को हर जगह मान-सम्मान मिलता है।
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