
सबसे अधिक त्यागी कोन एक बार राजा विक्रम फिर उस बेताल को पेड़ से निचे उतारकर योगीमहाराज के पास ले जाने के लिए वह आगे बढ़ता है। रास्ता बहुत लंबा होने के कारण बेताल हर बार की तरह इस बार भी एक नई कहानी फिर से राजन को सुनाते हुए कहता है। सुनो राजा …बहुत समय पहले की बात है वसंतपुर नाम का एक देश था ओर उस देश में वीर नाम का एक महाराजा था, जो अपने आस पास के छोटे-छोटे राज्यों पर अपना राज किया करता था। राजा उस देश की अलगपुर नामक एक राजधानी में रहता था। उसी राजधानी में एक व्यापारी देवदत्त नाम का भी रहता था, उसकी एक बेटी थी देवसेना नाम की । उस व्यापारी की बेटी देवसेना अक्सर हर रोज वह घूमने के लिए अपने पास के बाग में जाया करती थी।
एक दिन वहा एक युवक भी आता हे वह देवसेना को उस बाग में देखा और वह एक नजर देखता ही रह गया। वह देवसेना से मन ही मन प्रेम करने लगता है और हर समय उसी के ख्यालों ओर विचारों में डूबा रहता है।एक दिन वह युवक अपनी हिम्मत करके उसी बाग में गया। ओर देवसेना वहां पर अकेले बैठी हुई थी। उसने उसके पास जाकर देवसेना को बताया, “मेरा नाम देवीसिहं है और मैं आपकी इस खूबसूरती को देखकर आप को चाहने लग गया हूं।” उस व्यापारी की बेटी ने उसको बोला, “तुम मुझसे दूर रहो, मैं किसी और से प्यार करती हूं।” देवीसिंह उस देवसेना की बात नहीं सुनता और उससे शादी की बात करता है। फिर देवसेना उसे बताती है, “मेरी शादी विष्णुगुप्त के साथ तय हो गई है और मैं आपकी इस बात को स्वीकार कभी नहीं कर सकती हूं। ”इतना सुनते ही देवीसिंह बहुत दुखी हो गया। उसने गुस्से में आकर देवसेना से कहा, “अगर तुम मेरे से विवाह नहीं करोगी तो मैं अपनी हाथ की नस काट लूंगा।
”देवसेना उसकी इस बात को सुनकर बहुत डर गई। देवसेना ने उस युवक को वचन दिया वो ठीक चार दिन के बाद मिलने के लिए खुद आएगी। यह बात सुनकर देवीसिंह बहुत खुश हो जाता है ।चार दिन के बाद तो देवसेना की शादी विष्णुगुप्त से होनी थी । अपनी शादी के पूरे रीति-रिवाज निभाने के बाद देवसेना अपने पति विष्णुगुप्त के घर चली गई, लेकिन उसे अपना देवीसिंह को दिया हुआ वादा याद रहता है। विष्णुगुप्त जैसे ही देवसेना के पास जाता है, तो वह विष्णुगुप्त से कहती है कि आपको मुझे एक बहुत जरूरी बतानी है। वह बताती है, “ मुझे आज एक युवक से मिलने के लिये जाना है, जिसे मैंने शादी से पहले आज ही मिलने का उसको वचन दिया था।” देवसेना की यह बात सुनकर विष्णुगुप्त दुखी हो गया।
उसने मन में सोचा कि ऐसी ओरत पर धिक्कार है, जो अपनी शादी के पहले दिन ही दूसरे युवक के पास मिलने के लिये जाना चाहती है। अगर इसे मैं रोकूंगा तो भी कुछ फायदा नहीं यह तो चली ही जाएगी। ऐसा मन में सोचकर विष्णुगुप्त ने उसे मिलने जाने की इजाजत दे देता है।अपने पतिदेव से जाने की इजाजत मिलने के बाद देवसेना बहुत तेजी से उस लड़के के घर की तरफ जाने लगी। शादी के कपड़ों में जाती हुई देवसेना को देखकर एक डाकू ने उसे रास्ते में रोक दिया। उसका साड़ी का पल्ला पकड़कर उस डाकू ने बोला, “कहा जा रही हो ?” देवसेना डाकू से डर गई। उसने डाकू से कहा, “तुम मेरे सारे सोने के गहने ले लो और मुझे यहा से जाने दो।
”डाकू ने उस से कहा,” मुझे तेरे सोने के गहने नहीं तू चाहिए।” देवसेना ने डाकू को सारी बात बताते हुए बोला , “पहले मैं उस देवीसिंह से मिलने जाऊंगी, उसके बाद मैं वहा से लौटकर आपके पास आऊंगी।” डाकू ने पूछा, “तुम अपनी शादी के पहले दिन अपने पतिदेव को छोड़कर उसे मिलने के लिये जा रही हो।” देवसेना ने उसको जवाब दिया कि में अपने पतिदेव की इजाजत लेकर ही आई हु।
यह बात सुनकर डाकू ने कहा, “जब तुम्हारा पतिदेव तुमको भेज सकता है, तो आप जाओ मैं भी नहीं रोकता हूं। पर बात याद रखना वहां से लौटकर तुम सीधे मेरे पास ही आना।”देवसेना डाकू को अपना वचन देकर उस युवक के पास जाने के लिए वहा से चलने लगी। उधर, देवसेना का पति विष्णुगुप्त और डाकू दोनों उसका पीछा करने लगते है। देवसेना चलते-चलते देवीसिंह के घर पर पहुंच गई। उसने देवसेना को शादी के कपड़े में देखकर उसे पूछा, “अरे ! तुम शादी करने के लिए मुझसे शादी के कपड़े पहनकर आई हो।” देवसेना ने उसे अपनी सारी बात बताई कि उसका विवाह हो गया है।
इतनी बात सुनते ही उस युवक ने कहा, “अपने पतिदेव से बचकर तुम कैसे यहां आ गई।” देवसेना ने उसे अपनी सारी बात बताई वो अपने पति से किस तरह इजाजत लेकर आई है।यह बात ही सुनते ही देवीसिंह ने कहा, “तुम्हारे पतिदेव की इतना विश्वास था तुम पर की तुम्हें आने दिया है और तुम शादी करके किसी और की बन गई हो। प्यार तो मैं आपसे बहुत करता हूं, लेकिन अब किसी और की ओरत को में हाथ नहीं लगा सकता हु । इससे पहले की यहा कोई तुम को देखे , तुम अपने पति के पास वापस जाओ।” डाकू और देवसेना का पति छुपकर दोनों उनकी सारी बातें थ्यान से सुन रहे थे।
जैसे ही देवसेना , उसके देवीसिंह के घर से बाहर निकलती है, तो वह दोनों भी अपने-अपने अलग मार्ग पर निकल पड़ते हैं।देवसेना युवक के घर से निकलकर सीधे उस डाकू के पास पहुंचती है। डाकू उसको देखकर मन में विचार करता है, यह ओरत कितनी पवित्र है, कुछ भी करना इसके साथ गलत होगा। उसको याद आती हे सारी बाते उस देवीसिंह के घर की । वो देवसेना की सच्चाई और देवीसिंह के त्याग को देखकर बहुत प्रभावित होता है और उसे कहता है, “तुम जाओ अपने पतिदेव के पास यहां पर क्या कर रही हो।” ऐसा कहकर डाकू देवसेना को उसके पतिदेव के घर तक छोड़कर वह आता है।
बेताल देवसेना की कहानी को बीच में रोककर राजाविक्रम से पूछता है, “हे महाराज! अब आप बताओ कि, सबसे बड़ा त्याग उन तीनों में से किसका था ?” राजा विक्रम ने जबाव दिया ओर कहा , “बेताल उन तीनों में त्याग सबसे बड़ा डाकू ने किया है।” इतना बात सुनते ही वो फिर राजा से पुछा कैसे
राजा विक्रम ने कहा , “सुनो बेताल, देवसेना का पति यह सोचकर जाने दिया कि यह दूसरे व्यक्ति से प्यार करती है ऐसी ओरत का क्या करना मुझे। दूसरे की धर्मपत्नी समझकर देवीसिंह उसे छोड़ता है और उसे यह लगता हे कि वह पाप वह अधर्म कर रहा है। इस बात का डर था कि देवसेना का पति सुबह उसे राजा से कहकर कही सजा न दिलवा दें। डाकू को किसी भी बात का भय नहीं था, न उसे गहने से जड़ी ओरत को उसने त्याग दिया। वो हमेशा से ही बुरे कर्म कर रहा था, इस बार भी अगर वह गहने ले लेता तो भी कुछ नहीं बिगड़ता। डाकू का त्याग इसी वजह से बड़ा है।” राजा का सही जवाब सुनकर बेताल बोला, “राजा आपने मुंह खोल दिया, अब मैं फिर चला।” इतना कहकर बेताल उड़ गया ओर फिर से जाकर जंगल मे पेड़ पर उल्टा लटक गया।इस कहानी से
सबसे अधिक त्यागी कौन कहानी से सीख: -इंसान को अपने चरित्र और आत्मविश्वास को किसी भी मुसीबत में नहीं खोना चाहिए।
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