विक्रम बेताल की 19वीं कहानी – पिंडदान का अधिकारी कोन ?

विक्रम बेताल की उन्नीसवीं कहानी: पिण्ड दान का अधिकारी कौन?

पिंडदान का अधिकारी कोन?इस बार भी राजा विक्रम ने उस बेताल को अपने कंधे पर लटकाकर और आगे की ओर बढ़ने लगते हे। बेताल ने राजा से कहा मार्ग अभी बहुत लंबा हे इसलिए आप फिर से एक नई कहानी सुनो…बहुत वर्षों पहले की बात हे एक जूनागड़ नाम का राज्य था उस राज्य मे एक विधवा राधा और उसकी बेटी जिसका नाम जया था राधा के विधवा होने के बाद उसके पतिदेव के भाई उसका सारी धन दोलत ले लेते हे फिर राधा और उसकी बेटी जया को घर से बाहर निकाल देते हैं।

उसके बाद दोनों राधा ओर जया वहा से निकल कर दूसरे नगर के लिए निकल जाते हैं। राधा वह जया चलने के धक जाते हे वह रास्ते में एक जगह विश्राम करने के लिए ठरहते हैं तो वहां एक राजा का सिपाही एक चोर को बांधे रखे हुआ होता है। चोर को बहुत प्यास लग रही होती है वो राधा और उसकी बेटी जया उसको पानी पिलाने के लिए उस सिपाही से विनती करती है।

चोर पानी पीने के बाद वो राधा-जया से सारी बातें पूछता है आपके साथ ऐसा क्या हुआ था। चोर उनकी सारी बातें सुन के बाद जया के साथ विवाह करने की बात राधा से करता है। यह बात सुनकर राधा को बहुत गुस्सा आता है और वो जाकर उस राजा के सिपाही को चोर की गई शादी वाली बात बताती है। राजा का सिपाही भी चोर पर बहुत गुस्सा निकालते हुए कहता है कि, “कुछ दिनों में तुमको फांसी होने वाली हे और तुम विवाह करने की बात कर रहे हो।” यह बात सुनकर चोर बोला , “ मैंने बहुत पाप किये , अब मुझे लगता है कोई तो मुझे मरने के बाद पानी दे सके। मेरा इस दुनिया मे कोई नहीं है, मैं चैन लेकर आराम से मर भी नहीं सकता हु, भूत बनकर इधर उधर भटकता फिरूँगा मैं।”चोर की यह सब बात सुनने के बाद सिपाही वहां से आराम करने चला जाता हे।

19वीं कहानी पिंडदान का अधिकारी कोन

सिपाही के वहा से जाने के बाद चोर राधा और उसकी बेटी जया को उसने छिपाये सारे धन दोलत के बारे में बताने लगा, उसने बोला, “अगर अपनी बेटी जया का विवाह मेरे साथ करते हो तो मैं आपको मेने छिपाये सारे धन दोलत के बारे में आपको सब बता दूंगा, फिर मेरे मरने के बाद आप जाकर उस धन दोलत के साथ अपनी सारी जिंदगी आराम से निकाल सकोगी।” उस चोर की बात सुनकर दोनों माँ बेटी सोच में पड़ जाती है। जया की मां राधा ने उस चोर से कहा, “तुम यह काम क्यों करना है।” तो चोर ने जबाव दिया , “विवाह के बाद मेरी जो संतान होगी वो मेरे मरने के बाद मेरा पिंडदान करेगी , जिससे मुझे मुक्ति मिलगी और मैं कभी भूत नहीं बनूंगा।” ये सब बात सुनने के बाद राधा अपनी बेटी जया का विवाह चोर से कराने के लिए उसे हा कर देती है।

दोनों का विवाह होता है और जल्द ही उन दोनों को एक संतान भी होती है। चोर का फांसी का समय भी आ जाता हे ओर उसे फांसी लगा दी जाती है। राधा और जया काफी दुखी होते हैं। कुछ समय बाद राधा को चोर की कही गई बात याद आती है कि एक गुफा के अदर एक मूर्ति के सामने वाली जमीन के नीचे अपना चोरी किया हुआ खजाना छिपाया है।राधा वह जया वहां जाकर देखते और वह वहा जमीन को खोदने लगते हैं, फिर उनको धन दोलत और सोना मिलता हैं। जया फिर भी वह दुखी होती है और जया से कहती है, “अगर हमे यहा पैसे नहीं मिलते तो, लेकिन वह जिंदा रहता तो मुझे फिर भी सबकुछ मिल जाता।” राधा बेटी को यह बात समझाते हुए उसे कहती है कि, “अगर धन है तो हमे सारी खुशी फिर से मिल जाएगी।”उसके बाद दोनों राधा वह जया एक नए शहर मे पहुच जाते हे उस शहर मे जाकर दोनों खुशी-खुशी से अपनी जिंदगी बिताते हैं।

कुछ समय के बाद राधा की सखिया जया का विवाह कराने को लेकर उस से पूछती हैं। राधा उनको कहती है, “मुझे अपनी बेटी जया का विवाह तो करवाना है, लेकिन एक बात हे की लड़का ऐसा हो जो मेरे यहा घर-जमाई रहे।” फिर कुछ समय के बाद एक पंडित का लड़का उनके घर पर आता है, उसके सामने राधा अपनी बेटी जया के विवाह की बात का प्रस्ताव रखती है। पंडित का लड़का उनका घर और धन देखकर लड़के के अंदर लालच आ जाता हे ओर वह में विवाह के लिए उनको हां भी कर देता है।

वो कुछ समय तक उनके घर पर ही साथ मे रहने लगता है और वह उनका भरोसा जीत जाता हे एक रात वह घर के सारे जेवरात और धन लेकर वहा से भाग जाता हे। इस दुख से जया की मां राधा की मौत हो जाती है और जया गरीब और अकेली हो जाती हे । जया उसके बाद उस नगर से अपनी संतान के साथ दूसरे शहर चली जाती हे।

समय निकलता जाता हे और जया अपना गुजारा करने लगी। जया का बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होने लगा।एक दिन मां-बेटे रास्ते में जा रहे थे इतने में उन दोनों को एक राजकुमार दिखाई पडा, राजकुमार के गले को एक अजगर ने पकड़ रखा था। जया के बेटे ने अजगर को बड़ी मुश्किल के बाद उस राजकुमार के गले से आजाद किया, लेकिन उस राजकुमार की मौत हो गई होती हे। उसी समय राजकुमार के पिता राजा भी वहां पहुंच जाते है। अपने बेटे की मौत देखकर वो काफी दुखी हो जाते हे, लेकिन राजा जया के बेटे के उस वीर साहस को देखते हुए जया के बेटे को अपना मान कर उसे गोद लेने का निर्णय किया। जया और उसका बेटा राजमहल मे रहने लगेंजया का बेटा देखते ही देखते वह राज्य के और महाराज के भी कार्यों को बहुत अच्छे तरीके से सीख गया और उसने राजा के बेटे की जगह प्राप्त कर ली । राजा की उम्र बहुत हो जाती हे और कुछ समय के बाद उनकी मौत हो जाती है।

राजा ने अपने मरने से पहले जया के बेटे को सारा राज्य का कार्यभार उसे सौंप ओर राजा का पद दे दिया। उसके बाद जया ने अपने बेटे से बोला कि अपने पिता की मौत के बाद बेटे का धर्म होता हे की उनकी आत्मा की शांति ओर श्राद्धपक्ष और उनका पिंडदान कार्य करना होता है। अपनी माँ की बात सुन कर बेटा अपनी मां जया के साथ पिंडदान कार्य करने के लिये बाहर निकल पड़ा।

जब वह एक नदी के किनारे पर पहुंचा तो उसको तीन हाथ दिखाए देते है।बेताल इतनी कहानी सुनाने के बाद शांत हो गया और उसने राजा विक्रम एक सवाल पूछा, “बताओ राजा , लड़ने का पिता कौन था ? जया का बेटा किस के हाथ में वह पिंड देगा ? तीनों हाथों मे एक चोर का है, जया की शुरुआत में विवाह हुआ था। दूसरा हाथ उस पुरुष का है, जिसने धन को देखकर जया से विवाह किया था और तीसरा राजा का, जिसने जया के बेटे को अपने राज्य का राजा बनाया उसे गोद लेकर अपना बेटा बना कर रखा था।

”राजा विक्रमादित्य ने बेताल से कहा, “उस का पिता चोर है, जिसने जया से अपने पूरे रीति-रिवाज के साथ विवाह किया था । दूसरे पुरुष ने तो जया से विवाह लालच मे किया थी और राजा ने तो अपना राज्य धर्म का काम किया था। चोर ही असली पति हे जया का और बेटे का पिता, क्योंकि चोर ने जया के लिए बिना किसी अपने स्वार्थ के लिये शादी की ओर मरने से पहले धन छोड़ा, वो खुशी से जिंदगी बिता सके बड़े आराम से।राजा का जबाव सुनते ही बेताल बहुत खुश होता है। और वह शर्त के अनुसार उसी समय वह उड़ के वापस घने जंगल में जाकर एक पेड़ पर उल्टा लटक जाता ।

विक्रम बेताल की कहानी – पिंडदान का अधिकारी कोन कहानी से सीख:

जो इंसान बिना किसी स्वार्थ के काम करता है, उसे फल जरूर मिलता है।

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