विक्रम बेताल की 12वीं कहानी | दीवान का मरण

विक्रम बेताल की 12वीं कहानी | दीवान का मरण
विक्रम बेताल की कहानी: दीवान की मृत्यु - बेताल पच्चीसी बारहवीं कहानी

दीवान का मरण: दीवान का मरण बहुत असफलताओं के बाद भी राजा विक्रम ने एक फिर बार से बेताल को लेकर वह योगी के पास ले जाने लगता हे ओर उसे अपने कंधे पर लेकर उसे कर चल देता हे। राह काटने के लिए बेताल ने राजा से कहा कि आप को एक ओर नई कहानी सुनाता हु आप सुने।बहुत सदियों पुरानी एक बात है यश नाम का एक राजा बेला नामक राज्य में राज करता था।

राजा यश बड़ा ही भोग विलासी था। उस यश राजा का एक मणि नाम का एक दीवान सेवक था। मणि बड़ा ही होशियार और बुद्धिमान चतुर राजमंत्री था। वह राजा यश के महल का सारा राज-कार्य वह संभालता था और भोगविलासी राजा यश अपने मणिमंत्री पर सारा राजकार्य उसके ऊपर डालकर विलासिता में पड़ा रहता था।राजा यश के भोग-विलासिता में अपना अधिक धन खर्च कर देता था । ओर अधिक खर्च की वजह से राज के महाकोष का धन धीरे धीरे कम होने लगाता है।

राज की प्रजा भी राजा यश से बहुत परेशान रहने लगी। जब इस बात का पता मणिमंत्री को चला कि सब प्रजा राजा की बुराई कर रही हैं तो उसे बहुत ही दुःख होता हैं । फिर जब उसने देखा कि प्रजा उसकी भी राजा के साथ साथ बुराई कर रही है तो उसको बडा ही बुरा लगने लगता है। मणि उन बातों के बारे में विचार कर परेशान होता है ओर वह अपने मन के गुस्से को शांत करने के लिए दूसरे नगर की यात्रा पर जाने के बारे में सोचता है । इस बात के बारे में बात करने के लिए वह राजा के पास जाता हे ओर राजा से बात करके उनसे आज्ञा लेकर वह यात्रा पर निकल जाता हैं।मणि चलते-चलते एक सागर किनारे पर पहुंच गया। वहाँ पर पूरा दिन बीत निकलता हे और रात हो जाती हे। उसने विचार किया कि आज की रात यहीं रुक कर विश्राम कर लेता हूं।

यह सोच कर वह सागर किनारे एक पेड़ के नीचे सो जाता हैं।मध्यरात्रि को जब उसकी आंख खुलती हे तो वह देखता हे कि सागर से एक जगमगाता हुआ एक पेड़ निकल रहा होता है। उस पेड़ पर तरह-तरह के हीरे-जवारात लटके हुए होते है। उस पेड़ पर एक सुंदर नारी बैठी हुई होती हे ओर वह विणा बजा रही थी। इस दृश्य को देख मणि को अपनी इन कोमल आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा होता है। उसे दृश्य को देखते ही देखते अचानक वह पेड़ और उस पर विराजमान बैठी नारी अदृश्य हो गई। यह सब देखने के बाद वह घबराह जाता हे और उसी समय उल्टे पाव अपने नगर की ओर दौड़ पड़ता है।

जब वह राज्य महल मे पहुंचाता हे तो वह देखता है कि उसकी अनुपस्थिति मे राजा के सारे भोगविलास छूट गए हे ओर उसने राजा को वह दृश्य के बारे में पूरा किस्सा सुनाया। दीवान मणि की यह बात सुनकर राजा यश के मन में फिर से उस नारी को पाने का लालच आ जाता हैं। दूसरे दिन वह राजा सारा राज्य वह काम दीवान के ऊपर छोड़ कर और खुद साधू का रूप धारण कर उस सागर तट पर जा पहुंचा।जब रात होती हे तो राजा को भी वह हीरे-जेवरात से जड़ा पेड़ दिखा। वह नारी अब भी उस पेड़ पर विराजमान बैठी हुई थी।

राजा सागर मे तैरता हुआ उस नारी के पास जा पहुंचा और उस नारी को अपना परिचय बताया ओर फिर उसने नारी से उसके बारे में पूछता हे। उस नारी ने कहा मेरा नाम कमला है और मैं राजा विद्याधर की बेटी हूं।” फिर राजा उस से बात करता हे और उसके सामने अपनी शादी की बात करता हे। वह कमला उस राजा को कहती हे कि, “आप जैसे साहसी महान राजा की रानी बनना मेरे लिये एक सौभाग्य की बात होगी और मेरा जीवन सफल हो जाएगा आपको मेरी एक शर्त सुननी होगी।

हर कृष्ण और शुक्लपक्ष की पंचमी और नवमी को एक राक्षस के पास चली जाती हूं, जो मुझे खा जाता है। उस राक्षस को आपको हमेशा के लिए खत्म करना होगा।” राजा यश ने तुरंत उसकी यह शर्त मंजूर कर ली। ओर वह नारी गायब हो जाती है और राजा उस दिन का इंतजार करता है।उसके बाद शुक्लपक्ष की पंचमी आई तो वह कमला रात को बाहर निकली हे। ओर उस जगह उसके साथ राजा भी गया और छूपकर उस राक्षस के आने का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद वह राक्षस वहां पर आया और कमला को खा गया।

यह देखकर राजा यश ने उस राक्षस पर हमला कर देता है और अपनी तलवार से उसका मुकाबला करता हे ओर उसके पेट को चीरकर कमला को जीवित बाहर निकाला।उसके बाद राजा यश ने उससे पूछा कि यह सब कैसे ओर क्यो हो रहा है ? इस पर कमला ने जबाव दिया कि – मैं हर पंचमी और नवमीं के दिन यहां भगवान भोलेनाथ की पूजा करने आती हूं और जब तक मैं अपने घर नहीं लौट जाती तबतक मेरे पिताश्री मेरे बिना कभी खाना नही खाते। एक बार मुझे घर जाने में बहुत देर हो गई और पिताश्री बहुत देर तक भूखा रहे।

जब मैं अपने घर गई तो वह बहुत गुस्सा मे थे और उन्होंने मुझे एक श्राप दे दिया कि जब भी मैं पंचमी ओर नवमीं के दिन पूजा करने यहाँ आऊगी तो एक राक्षस मुझे खा लेगा। फिर मैं उसका पेट चीरकर बाहर आया करूंगी।जब मैंने अपने पिता से उनसे श्राप से मुक्त होने की विनती की तो उन्होंने मुझे कहा कि जब बेला राज के राजा मुझ से विवाह करने की बात करेंगे तो उसे यह बात बताना वो उस राक्षस का हमेशा के लिए वध करेंगे तो मैं श्राप से मुक्त हो जाऊंगी।कमला के श्राप से मुक्त होने के बाद राजा यश उसे अपने साथ अपने राज्य मे लेकर आए और बड़े शाही तरिके से वह धूमधाम से उसके साथ अपनी शादी की करते है।

इसके बाद राजा यश एक दिन अपने उसी मणिमन्त्री को वह सारी कहानी सुनाते हे और यह सब बात सुनकर मणि की मृत्यु हो जाती हैं।इतनी कहानी सुनाकर बेताल ने राजा से पूछा हे राजा! अब आप यह बताओ कि सब बात सुनकर दीवानमणि की मृत्यु क्यों हुई ?राजा ने बेताल से कहा, “दीवानमणि की इसलिए मौत हुई, उसने सोचा कि राजायश फिर से नारी के लोभ में पड़ गया हे और भोग-विलासीता के कारण उसके राज्य की दशा फिर से बुरी होने वाली है। उस कमला के बारे में राजा को नही बताना ही अच्छा था। ”राजा ने जैसे ही जबाव दिया तो बेताल फिर से उड़ के पेड़ की ओर चला जाता है और जाकर पेड़ पर उल्टा लटक जाता है। राजा फिर एक बार बेताल को पकड़ने उसके पीछे चले जाते है।

दीवान का मरण कहानी से सीख: किसी भी इंसान को किसी भी चीज या कुछ भी हो उसको उस मे उतना नही डूबना चाहिए जिसे उसका सबकुछ खत्म हो । इंसान को अपनी जरूरत के हिसाब से ही चीजो का सेवन करना चाहिए।

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