विक्रम बेताल की चौधवी कहानी | चोर क्यों हंसा?

विक्रम बेताल की चौधवी कहानी - चोर क्यों हंसा?
विक्रम बेताल की चौधवी कहानी - चोर क्यों हंसा?

चोर क्यो हँसा एक बार फिर राजावीर विक्रम, पिशाच को पेड़ से उतारकर कंधे पर टांगकर योगी के पास ले जाने के लिये वह आगे की ओर बढ़ने लगते  है। इस दौरान पिशाच फिर से राजावीर विक्रम को एक नई कहानी सुनाने लगता है और शर्त होती है, अगर राजावीर ने मुंह खोला तो वो उड़ जाएगा और जवाब पता होते हुए भी नहीं दिया तो राजावीर विक्रम की गर्दन को धड़ से अलग कर देगा।

पिशाच राजावीर को सुनाता है…बहुत साल पहले की बात हे एक मथुरा नाम की नगरी में थी उस नगरी मे वीर नाम का एक राजा राज करता था। उसी राज्य में एक धनवान भी रहता था। धनवान का नाम था रतन । उसकी एक ही सुंदर परी जेसी बेटी थी गोरी। गोरी के लिए कई रिश्ते आ रहे थे उसको कोई भी पुरुष पसंद नहीं आ रहा था , उसने किसी से भी विवाह करने के लिए हां किया। इसी कारण से उसके पिता रतन काफी हैरान थे। गोरी को सिर्फ सुंदर और धनवान नहीं बल्कि एक समझदार और पति चाहिए था।

एक तरफ गोरी के पिता अपनी बेटी से परेशान थे। दूसरी ओर मथुरा नगर में चोरी की कवायद बहुत बड़ने लगती हे , जिस वजह से रतन  को हर समय यह डर सताये रहता था कि कहीं गलती से भी चोर उसके घर मे नहीं घुस जाये वरना उसके घर से चोर सारी धन दोलत न लेकर चले जाए। इसी बीच गोरी की मुलाकात एक पुरुष से होती है। वह पुरुष चोर होता हे इसकी बात का गोरी को पता नहीं होता हे।

गोरी को दूसरे के घरों से आम तोड़कर खाने में बड़ा मज़ा आता था। वह पुरुष गोरी को फल चुराना सिखाता है। इस वजह से गोरी उस पुरुष से बहुत प्रभावित होती है और रोज उससे शाम को मिलने जाया करती है। धीरे धीरे समय के साथ उन दोनों मे प्यार हो जाता है। चोर रोज शाम को गोरी से मिलने के बाद वह चोरी करने के लिए नगर मे निकल जाता था। एक तरफ मथुरा में बढ़ती चोरी से परेशान जनता वह राजावीर ने सारे मंत्रिगण और सेवादार को फटकार लगाते हुए कहा, “हमारे होते हुए नगर में रोज चोरियां हो रही हैं, लेकिन न तो कोई उसे पकड़ पा रहा है और न ही कोई मंत्रीगण उसे पकड़ने की कोई खास योजना बना पा रहा है।”इसके बाद राजावीर ने खुद चोर को पकड़ने का निर्णय लिया। चोर को पकड़ने के लिए राजावीर शाम होते ही एक साधारण पुरुष का भेष धारण कर लेते ओर रोज रात को नगर में भ्रमण करने लगे।

चोर क्यों हंसा भाग -14

एक दिन राजावीर नगर मे भ्रमण कर रहे थे तो वह किसी पुरुष को एक घर के अंदर कूदते हुए देखते हे । राजावीर को शक हुआ तो वह भी उस घर की तरफ उस के पीछे चल पड़ते । वहाँ उस पुरुष के पास चले जाते हे पुरुष राजा को देख लेता हे ओर देखकर कहने लगा, “मुझे तो लगा था कि इस मथुरा नगरी मे एक मैं ही अकेला चोर हूं। तुम भी चोरी करने यहां पर आएं हो।” राजा वीर उस पुरुष से कुछ भी नहीं कहते। इसके बाद चोर बोला , “तुम भी चोरी करने आए हो और मैं भी। तो हम चोर चोर भाई हुए तो तुम्हें मुझसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम ओर में भाई है।” उसके बाद चोर, राजा वीर को अपने साथ घर चलने को कहता हे।

राजा भी उस चोर को उसके साथ घर जाने के लिये हा कर देते हे ओर चोर के साथ राजा वीर उसके घर साथ चले जाते हैं।चोर राजा वीर को उन्हें अपने घर के अंदर एक अपनी गुफा में ले जाता है, जहां उसने नगर मे की सारी चोरी का धन छिपा कर रखा था। राजा वीर उसकी उस जगह मे इतना सारा मालधन और गुफा में मौजूद सारी सुविधाओं को देखकर दंग रह जाते हे। थोडी देर के बाद राजा वीर ने चोर से पूछा की, “तुमने तो इतना सारा धनमाल अपने पास इकट्ठा कर रखा है। तुम्हें कभी भी चोरी करते हुए किसी भी बात का डर नहीं लगता।” चोर ने जोर से हंसकर राजा को कहता है, “राजा वीर की सेना में कोई भी वीर नहीं है और वो अपने काम को ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं। अगर कोई भी एक पुरुष भी अपना काम ईमानदारी से करता, तो इतना मुश्किल कभी नहीं होता मुझे पकड़ना। एक चोर राजा वीर की पूरी सेना के ऊपर पर भारी पड़ गया है।

वहां उस सेना मे भी कोई योद्धा ही नहीं है।” चोर की इतनी बात सुनते ही राजा वीर ने अपनी छुपाई हुई तलवार निकाली और उस चोर की गर्दन के ऊपर तान दि उसे बंधी बना लिया ओर साथ चलने को बोला। बंधी बनने के बाद चोर हैरान होता हे की क्या हो गया। उसे कुछ देर तक समझ नहीं आया । उसने राजा से पुछा कि आप कोन हे मुझे क्यों बंधी बनाया हे ओर राजा उसे कहते हे की मे ही राजा हु।

विक्रम बेताल की कहानी भाग -14 (चोर क्यों हंसा?)

नगर मे बड़ रही चोरी को देखर मेने यह रूप धारण किया हे ओर मे हर शाम को अपने नगर मे इसी रूप मे घूमता हु फिर चोर सारी कहानी समझ जाता हे की इतनी देर से राजा वीर भेष बदलकर उसके साथ थे। राजा वीर उसे अपने साथ उसी समय उसको राजमहल ले जाते हैं और उसे एक जगह रस्सी से बाध देते हे । दूसरे दिन सुबह अपनी सभा मे उसको लाकर खड़ा कर देते हे ओर उसकी सारी बात सभा मे राजा सबको बताते हे उसे  फांसी पर लटकाने की सजा सुना देते हैं। जैसे ही इस बात का पता जनता को होता हे तो सारे लोग देखने आते हे की चोर कोन हे चोर पकड़ा गया और उसे फांसी होने वाली है, तो गोरी भी देकने जाती हे ओर उसे देखते ही उसे पहचान जाती हे ओर परेशान हो जाती है। गोरी उस जगह से अपने घर आती हे ओर उसे पता चल जाता कि राज्य में रोज चोरी यही कर रहा था, इसी ने आम चुराना सिखाया था।

गोरी परेशान होकर अपने पिता के पास जाती ओर अपने पिता रतन से कहती है, “ जिस व्यक्ति को मैं अपना पति मन-ही-मन मे बना चुकी हूं, उसे तो राजा वीर ने पकडा है और उसे तो फांसी पर चढ़ाने वाले हैं। आप कुछ कीजिए पिता जी,।” रतन को अपनी बेटी गोरी की वह बात कुछ समझ नहीं आती है। तब गोरी अपने पिता को चोर और अपनी मुलाकात की सारी बात बताती है और कहती है कि वो उसके बिना वह कभी नहीं रह सकती है।रतन अपनी बेटी गोरी को समझाने की बहुत कोशिश करता है। गोरी अपने पिता की बात जब नहीं मानती है, उसके पिता मजबूर होकर राजा वीर के पास चला जाते है। वहा जाकर उसके पिता राजा वीर को बताते  है कि उसकी बेटी गोरी उस चोर से बहुत प्यार करती है उसके बिना जी नहीं सकती हे।

अगर आपने उसे फांसी दे दी तो वह भी अपने जिंदगी त्याग कर देगी। वह धनवान रतन अपनी बेटी गोरी के खातिर राजा वीर को अपने सारे सोने के सिक्के और बहुत सारा धन देने की बात करता हे , लेकिन राजा वीर उसकी एक बात भी नहीं सुनते। कुछ समय बाद ही राजमहल में गोरी पहुंच जाती है। वह भी राजा वीर से हाथ जोड़ कर आग्रह करती है, लेकिन राजा वीर उसकी वह किसी की एक बात नहीं सुनते और जल्लाद से चोर को जल्द ही फांसी देने को कहते हैं।जब चोर को फांसी पर लटकाने का समय होता है, वह चोर उसी समय रोता है और फिर बाद मे जोर से हंसने लगता है। जल्लाद चोर को फांसी पर लटका देता हे , गोरी भी उसी समय अपनी आत्महत्या की कोशिश करती है। उसी वक्त आकाश से भविष्यवाणी होती है।

ये बालिके तुम रुक जाओ , “हे बालिके ! तुम्हारा प्यार तो बहुत ही पवित्र है। तुम्हारे इस पवित्र प्यार को देखकर हम बहुत प्रसन्न हुए हैं। तुम को जो भी कुछ तुम्हें मांगना है। तुम मांग सकती हो ” यह बात सुनकर गोरी कहती है, “मेरे कोई भाई नहीं हे , आप मेरे पिता को उन्हें आशीर्वाद दें कि उनके पुत्र हो जाएं।” ठीक हे बालिके । तभी एक ओर भविष्यवाणी होती है, तुम को कुछ और वरदान मांगना हे।” फिर गोरी कहती है, “मैं उस चोर से प्यार करती हूं उसके बिना मेरा जीना बेकार हे अगर हो सके तो आप उन्हें पुनः जीवित कर दीजिए।” तभी गोरी के मांगते ही चोर की साँसे फिर से चलने लगती हे वह जीवित हो जाता है।यह सब नजारा देखकर राजा वीर बहुत दंग रह जाते हैं। उधर, लेकिन चोर जीवित होने के बाद फिर से एक बार रोता है और जोर से हंसने लगता है। उसी दौरान राजा वीर चोर को बोलते हैं, “अगर तुम अपनी नई जिंदगी मे सही रास्ते पर चलने का वचन मुझे देते हो, तो मैं तुम्हें राज्य का महा सेनापति का पद तुमको दे दूँगा ”।

चोर राजा वीर को सही रास्ते पर चलने का वचन देता है।कहानी सुनाते ही पिशाच शांत हो जाता है। फिर वह राजा विक्रमादित्य से कहता है, “हे राजा बताओ, वह चोर फांसी पर चढ़ते समय और जीवित होने के बाद रोया और फिर हंसा क्यू ?”राजा विक्रमादित्य ने जवाब दिया, “सुनो पिशाच, चोर को दुख इस बात का था कि उसने अपने जीवन में सिर्फ चोरी का काम किया हे इसके बाद भी इतनी सुंदर परी जेसी लड़की उसके लिए प्राण त्यागने को तैयार है। हंसा इसलिए, उसने सोचा एक ऐसी सुंदर लड़की जिससे सभी राजकुमार भी शादी करना चाहते थे, ओर उसे प्यार भी हुआ एक चोर से। उसे नया जीवन मिलने के बाद वो रोया और खुश भगवान के इस खेल से हुआ।” एक बार फिर राजा के सही जवाब मिलने के बाद पिशाच उड़कर पेड़ से जा लटका।

चोर क्यों हंसा कहानी से सीख: प्यार से बड़ी कोई ताकत नहीं होती है। जीवन में सही इंसान का चुनने से परेशानियों का हल निकाला जा सकता है।

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