विक्रम बेताल की कहानी – चार ब्राह्मण भाईयो की कथा

विक्रम बेताल की बाईसवीं कहानी: चार ब्राह्मण भाइयों की कथा

चार ब्राह्मण भाईयो की कथा: आपका फिर से विक्रम बेताल की कहानी मे स्वागत है हम लेकर आये है एक ओर नई कहानी – चार भाईयो की कहानी फिर से राजा विक्रम ने बेताल को उस बरगद के पेड़ से निचे उतारा ओर उसे पकड़ा, उसको अपने कंधे पर लटकाया ओर उस योगी के पास ले जाने के लिये वहा से निकलते हे तो बेताल ने राजा से बोल की मार्ग बहुत लंबा हे आप एक ओर नई कहानी सुनो ओर शुरू कर दी। उसने ने कहानी सुनाते हुए राजा विक्रम से बोला ….बहुत समय पहले की बात है।

अगद नाम का एक राज्य था उस राज्य मे सुमेरपुर नाम का एक नगर हुआ करता था । उस नगर में एक पुरोहित का परिवार भी रहता था। पुरोहित के परिवार में कुल चार बेटे और उसकी धर्म पत्नी भी थी। पुरोहित अपने परिवार के साथ मजे मे जिंदगी के दिन सुखी में बिता रहा था। एक दिन क्या होता हर कि अचानक पुरोहित की तबीयत खराब होती हे वह बीमार हो जाता है। उसकी हालत लगातार दिनों दिन बहुत ज्यादा खराब होती चली जाती है। अपनी सेहत में कुछ भी सुधार नही होने के कारण वह एक दिन उस पुरोहित की मृत्यु हो जाती है।

विक्रम बेताल की 22 वीं कहानी

पुरोहित की मृत्यु के दुख से उसकी धर्म पत्नी भी सती हो जाती है।पुरोहित और उसकी धर्म पत्नी की मृत्यु के बाद उनके परिवार के दूसरे लोगों ने उनके चारो लड़कों से उनकी सारी संपती वह धन को उन से छीन लिया। उन चारों भाई के पास जब कुछ नहीं बचा ओर वह वहा पे पूरी तरह से उनकी जिंदगी खराब होने लगी तो वह चारों भाई अपने ननिहाल नाना नानी के पास रहने के लिये चले गए। कुछ समय तक तो नाना नानी के यहा सब ठीक चलता है।

कुछ समय के बाद में नाना नानी के परिवार में भी उन पुरोहित के चारों भाई के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाने लगा।ऐसी हालात वह स्थिति को वह देखते हुए चारो भाइयों ने फैसला किया कि उन्हें कोई अच्छी विद्या सिखनी वह ग्रहण करनी होगी जिसे माता-पिता की तरह गाँव के लोग उनका भी सम्मान वह आदर करें।

यह बात सोचकर वे चारो भाई चारों अलग अलग दिशाओं में चले गये। उन चारों भाइयों ने जाकर वहा घोर तपस्या की और उसका फल कुछ इस तरह रहा की उन्हे विशेष विद्याएं हासिल हो गई। जब चारों भाई को विद्या की जानकारी हो गई तो वे फिर से एक जगह आकर वे एक दूसरे से मिलेते है, तो वे एक-दूसरे को हासिल की गई विद्या के बारे में बताया। ओर वे एक – दूसरे से बात करते हुए एक ने बोला की – मैं मरे हुये जीवों की हड्डियों के ऊपर मांस चढ़ा सकता हूं मेने इस विद्या को ग्रहण किया है।

चार ब्राह्मण भाईयो की कथा

उसके बाद दूसरा बोलता हे की मेने ऐसी विद्या को ग्रहण किया हे की में मांस के ऊपर पर खाल और बाल दोनों बना सकता हूं। उन दोनों की बात सुन के तीसरा बोलता हे की मेने भी एक अच्छी विद्या को ग्रहण किया है , में भी अब कुछ कर सकता हु मेने मरे हुए सभी जीवो के सारे अंगों का फिर से उनका निर्माण करने की विद्या सीखी है। जब तीनों भाई ने अपनी – अपनी विद्या की बाते बता दी तब चौथे भाई ने भी उन भाई से कहा की मेने भी कुछ ग्रहण किया हे , ओर कहता हे कि मैं मरे हुए जीवो में जान फिर से ला सकता हूं।

चारों भाइयों ने अपनी बारी-बारी से प्राप्त की गई विद्या का वे गुणगान करते और विद्या की परीक्षा एक-दूसरे की लेने के लिए वह जंगल में पहुंच गए। जंगल में जाकर उनको एक मरे हुए चीते की हड्डियां मिलती है। उनको इस बात की जानकारी नहीं होती हे कि यह हड्डियां किस जीव की हैं, उन्होंने वे हड्डियां वहा से उठा ली। पहले भाई ने अपनी ग्रहण की गई विद्या से उन हड्डियों के ऊपर मांस चढ़ा देता है। दूसरे भाई ने अपनी ग्रहण की गई विद्या से उन पर बाल ओर खाल दोनों पैदा कर देता है। तीसरे भाई ने अपनी ग्रहण की गई विद्या से उस जीव के सभी शरीर के अंगों का फिर से निर्माण कर दिया।

22 वीं विक्रम बेताल की कहानी

अंत में चौथे भाई ने अपनी ग्रहण की गई विद्या का प्रयोग कर उस चीते में नई जान डाल देता है। चीता फिर से जीवित होते ही उन चारों भाइयों को उसी समय मार देता हे वह उन्हे खा जाता है।इतनी कहानी सुनाते ही बेताल शांत हो जाता हे ओर राजा से कहते हुए बेताल बोलता हे, “बताओ राजा विक्रम सबसे बड़ा मूर्ख उन चारों भाइयों में जो पढ़े लिखे मूर्ख में कौन था ? ”राजा विक्रम ने बेताल से जवाब देते हुए बोला , “इन चार भाइयों में सबसे बड़ा मूर्ख वह चौथा भाई , जिसने अपनी मूर्खता दिखाई ओर चीते में जान फूंक दी । कारण है कि तीनों भाइयों ने तो बिना कुछ जाने ही चीते के शरीर का निर्माण कर दिया था। उनको तो पता नहीं था कि यह शरीर किस जीव का हे ओर उन्होंने उस का निर्माण कर दिया था। वहीं, चौथे भाई को बहुत अच्छी तरह से उसका पता चल गया था कि यह शरीर तो चीते का हैं।

सब पता होते हुये भी उस चौथे भाई ने अपनी मूर्खता का परिचय दिया ओर उस चीते के शरीर में जान नई डाल दी। ओर उसने अपनी बड़ी मूर्खता का प्रमाण दिया।”राजा विक्रम का सही जवाब सुन के बेताल ने कहा , “राजा विक्रम आपने इस बार भी बिल्कुल सटीक जवाब दिया है , लेकिन आपने मेरी शर्त को तोड़ दिया है। मैंने बोला था कि अगर आप बोले तो में चला , तो मैं फिर जाकर वापस पेड़ पर लटक जाऊंगा। राजा को इतना कहकर बेताल फिर से उड़ कर जंगल मे बरगद के पेड़ पर जाकर उल्टा लटक जाता है।

चार ब्राह्मण भाईयो की कथा कहानी से सीख:

इंसान को अपनी बुद्धि के बिना बल का प्रयोग नहीं करना चाहिये। वरना उनकी मूर्खता की पहचान होती है।

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