विक्रम बेताल की 18वीं कहानी – ब्राह्मण की कथा

विक्रम बेताल की अठारहवीं कहानी: ब्राह्मण कुमार की कथा

Brahman ki ktha: राजा विक्रमादित्य बेताल का पीछा करते हुए वटवृक्ष के पास पहुंचे जाते हे और बेताल को अपने कंधे पर लटकाकर आगे चलने लगे। बेताल फिर से राजाविक्रम को रास्ता बड़ा होने के कारण उनको एक नई कहानी सुनाने लगता है। बेताल राजाविक्रम को कहता है…बहुत सालों पहले की एक बात है, जयप्रदेश नाम का एक राज्य हुआ करता था उस राज्य मे एक कोटा नगर नाम का छोटा राज्य भी था उस राज्य में राजा भीमसेन राज किया करता था। उसी राज्य में एक विष्णुशंकर नाम का ब्राह्मण भी रहता था। विष्णुशंकर का उसका एक ही बेटा वह उसका नाम जय था।

सिर्फ नाम का वह जय था, लेकिन काम सारे उलटे करता था उसमें कोई गुण नहीं था। वो हर सुबह शाम बस जुआ खेलता ओर जुए में वह पिता की सारी कमाई उड़ा देता था। जय की दो बहने थीं। जय को किसी का भी ख्याल नहीं आता था। वो हर अपना समय जुआ खेलकर निकाल देता था उसी में ही व्यस्त रहता।अपने बेटे जय का ऐसा बुरा हाल देखकर विष्णुशंकर बड़ा परेशान रहने लगा। एक दिन विष्णुशंकर ने विचार किया , मैं जो कमाता हूं, ओर ये मेरी कमाई नालायक उसे भी इस गंदे जुएं में गवा देता है।

यही विचार कर उसने अपने बेटे जय को घर से बाहर निकाल दिया। घर से बाहर निकलते ही वह पड़ोसी राज्य मे चला जाता हे। वहां जय भूख ओर प्यास से इधर उधर घूमता रहता हे , जय को कोई भी काम नहीं मिलता हे और उसे कुछ खाने का भी नहीं मिलता हे। भूख प्यास के कारण वह एक दिन बेहोश हो जाता हे। पास से गुजर रहे एक योगी ने उसे देखा, तो उसे वहा से अपने साथ अपनी एक गुफा में लाये।

जय को जब होश आया तो उस पुरुष ने जय से पूछा, “क्या खाना हे तुमको ।” विष्णुशंकर का पुत्र कहता है, “आप योगी लगते हो क्या आप योगी हो, जो आपके पास हे वही खिला दे आप वही चीज खिला पाएंगे। मेरे को जो पसंद से वो खाना चाहता हूं, शायद आपके यहा नहीं हो।” जय की इतनी बात सुनते ही उस योगी पुरुष ने कहा, “तुम बताओ क्या खाने की तुम्हें इच्छा है।”योगी की इतनी बात सुनने के बाद जय ने इच्छा जाहिर की अपनी, उसे सुनते ही योगीपुरुष ने अपनी सिद्धि का उपयोग कर उसकी पसंद का भोजन प्रकट कर दिया।वह जय हैरान रह जाता हे, जय ने पहले भोजन किया और फिर सिद्ध पुरुष से कहा, “यह आपने कैसे कर लिया।” सिद्ध पुरुष ने जय से कुछ नहीं कहा, वह अंदर की तरफ जाने का उसे इशारा करता हे। जय अंदर गया, तो उसको एक बड़ा राज्यमहल और सेविकाये उसे दिखाई दीं।

विक्रम बेताल की 18वीं कहानी

सब ने जय की बहुत अच्छे से सेवा चाकरी की और वह आराम से नींद निकालने लग गया।जब जय सो कर उठता हे ओर उठने के बाद उसने सिद्ध योगी से दोबारा पुछा । सिद्धपुरुष ने कहा, “तुमको उसे से क्या करना है, तुम यहां मेहमान की तरह रहा करो और खाने का लुप्त उठाओ।” ब्राह्मण का पुत्र जय अपनी जिद में अड़ जाता और बोलने लगा मुझे भी यह सिद्धि सिखनी ओर मुजे हासिल करना है।

जय से परेशान होकर योगी पुरुष ने उसे वह सारी विधि बताता हे और कहा जाओ इसे मन लगाकर साधना से सिद्ध करो। जय कुछ समय बाद मन लगाकर की गई साधना से सिद्धि पूरी करके आता है। फिर योगी पुरुष जय से बोलता है, “तुम ने साधना से सिद्धि को बहुत अच्छे तरीके सम्पन्न कर रहे हो। यह तुम्हारा सिद्धि का एक पड़ाव था, तुमने उसे पार किया। तुमको अब अगला पड़ाव पार करना होगा। ” जय ने कहा, “मैं उसे भी पार करूंगा, लेकिन अगला पड़ाव शुरू करू उसे पहले मुझे एक बार अपने पिता से मिलना हे ओर मे घर जाना चाहता हूं।” सिद्ध पुरुष ने बोला , “ तुम जाओ।” वहा से जाने से पहले जय ने योगी पुरुष से अपने घर के लिए उपहार मांगा। योगी पुरुष ने अपनी फिर सिद्धि से जय को बहुत सारे तोहफे देता हे। उसके बाद धन की मांग की, सिद्ध पुरुष ने अपनी सिद्धि के दम पर उसे बहुत सारा धन भी दिया। फिर उसने बाद मे खुद के लिए नये कपड़े मांगे, योगी पुरुष ने उसे वो भी दिए।जय सब दिया हुआ लेकर वह अपने घर चला जाता हे , तो उसके घर के सभी लोग जय को देखकर हैरान रह जाते हे।

जय अपने साथ लाए उपहार और बहुत धन को देखकर उसके पिता विष्णुशंकर ने उस से पूछा, “बेटा जय तुमने कोई गलत काम तो नहीं किया चोरी तो नहीं।”जय ने बडी ही शान से कहा, “पिताजी मुझे ऐसा गलत काम करने की क्या जरूरत हे जब मुझे कुछ प्राप्त हो गया है, ओर मे उसकी मदद से आप सबकी भी हर मनोकामना पूरी कर सकता हूं।” उसके पिताजी ने जय को जरा संभल कर रहने को कहा और अभिमान न करने की सलाह उसे देते हे। कुछ समय जय अपने घर में बिताने के बाद फिर वहा से सिद्ध पुरुष के पास चला गया सिद्ध पुरुष के पास लौटकर उसने फिर से साधना शुरू की। बडा मन लगा कर वह ध्यान करने लगा। समय के साथ उसने ब्राह्मण पुत्र जय ने अगला पड़ाव भी पार कर लिया।

पड़ाव पार होने के बाद उसे वह सिद्धि प्राप्त हो जाती हे। योगी पुरुष के पास जैसे वह सिद्धि प्राप्त करके गया , तो सिद्ध पुरुष बहुत खुश हुआ। उसने जय से कहा, “तुमने अब सिद्धि प्राप्त कर ली है, आज तुमको कहना मुझे खिलना पड़ेगा। मुझे तो बहुत भूख लग रही है। ” यह बात सुनते ही ब्राह्मण का पुत्र जय बहुत प्रसन्न हुआ और विद्या की मदद से वह भोजन प्राप्त करने के लिए उसने मंत्र पडे मन मे। बहुर देर हो गई, लेकिन खाना सामने नहीं आता हे । वह बहुत गुस्सा हुआ और जोर से चिल्लाने लगा, मेरी सिद्धि काम नहीं कर रही क्यू।

मैंने भी सिद्धि प्राप्त की है, मुझे सिद्धि का फल क्यों नहीं प्राप्त हो रहा है ?यह कहानी सुनाते ही बेताल शांत हो गया और राजाविक्रम से पुछा , बताओ की मन से विधि करने के बाद जय को सिद्धि प्राप्त क्यों नहीं हुई ।राजा विक्रम ने कहा ,सबसे पहली वजह, वह सिद्धि प्राप्त करने से पहले घर चले जाना। दूसरी कारण वह विद्या लालच की वजह से प्राप्त कर रहा था। ओर लालच के चलते किए गए काम का फल कभी नहीं मिलता है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए इंसान को कभी लालच नही करना होता है।

ब्राह्मण की कथा कहानी से सीख:

इंसान को कभी लालच की वजह से काम नहीं करना चाहिए और लालच का फल कभी नहीं मिलता हे।

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