विक्रम बेताल की कहानी – बालक क्यों हंसा ?

विक्रम बेताल की बीसवीं कहानी: बालक क्यों हंसा?

बालक क्यों हंसा? हर बार की तरह पेड़ पर उल्टे लटके बेताल को राजन विक्रमादित्य उसे नीचे उतारते हैं और अपने कंधे पर उसे लटकाकर राजा आगे की तरफ बढ़ते हैं।

बेताल राजा को कहता हे महाराज अभी तो मार्ग बहुत काटना हे आप बोर हो जाओगे मे आपको एक कहानी सुनाता हु जिसे मार्ग जल्दी खत्म हो जाएगा ओर हमारी शर्त वही रहेगी ओर वह हर बार की तरह राजा विक्रमादित्य को फिर से नई एक कहानी सुनाने लग जाता है। बेताल राजा से कहता है सुनो…बहुत सालों पहले की एक बात है, त्रिभुवन नाम का एक देश था। उस देश मे चित्रकूट नाम का एक राज्य था।

उस राज्य मे एक चन्द्रन नाम का राजा राज करता था। उस राजा चंदन को शिकार करने वह खेलने का बहुत ही शौक था। एक बार राजा चंदन घने जंगल में शिकार करने को निकले , जंगल में घूमते-घूमते वो अपना मार्ग भटक गये । राजा उस जंगल मे मार्ग को खोजते खोजते थक जाते हे ओर वो एक आम के पेड़ के नीचे जाकर आराम करने लग जाते हे। राजा चंदन आराम करते हुए उनकी नजर उस जंगल मे एक खूबसूरत लड़की के ऊपर पड़ती है । उस लड़की की खूबसूरती देखकर राजन उस के ऊपर मोहित हो जाते हे।

20वीं विक्रम बेताल की कहानी

उस लड़की ने अपने शरीर पर फूलों के गहने पहन रखे थे, राजन उस लड़की के पास जाते हे । वो लड़की भी राजन को देखकर मन ही मन में बहुत खुश हुई। उसी समय में उस कन्या की सखी ने राजन से बोला कि यह योगीमहाराज की बेटी है। उसकी सखी की बात सुन के राजन स्वयं ही चलकर योगीमहाराज के पास गए, उन्होंने जाकर योगीमहारज को अपना प्रणाम किया।

योगीमहाराज ने राजन से पूछा, “राजन आप मेरे यहां कैसे ?” राजन ने कहा, “मैं इस घने जंगल मे यहां शिकार खेलने के लिये आया था।” राजन की बात सुनकर योगीमहाराज ने कहा, “श्रीमान आप , क्यों इन बिन बोले मासूम जीवों को मरते हो आप इन्हे मारकर क्यों पाप के भागीदार बनते जा रहे हो।” योगीमहाराज की जीवों के पति की बात सुन कर राजन पर बहुत गहरा असर हुआ।

विक्रम बेताल की कहानी बालक क्यों हंसा

राजन ने योगी से कहा, “मुझे आपकी कही गई बात समझ में आ गई है, आज के बाद मैं कभी शिकार का खेल नहीं खेलूँगा ओर नहीं उनका शिकार करूंगा।” राजन की बात सुन के योगीमहाराज बहुत प्रसन्न हुए और बोले, “राजन तुम्हें जो कुछ मांगना है तुम मेरे से मांगो।”राजन ने योगीमहाराज से कहा की आपकी बेटी के साथ विवाह करने का मेरा मन हे क्या आप मेरी यह मांग पूरी कर सकते हो। योगी महाराज ने राजन की कही गई बात मान ली और बेटी की विवाह राजन के साथ करा दिया।विवाह के बाद राजन अपनी धर्म पत्नी को लेकर अपने राज्यमहल की तरफ निकल पड़ा। दोनों वह मार्ग में जाते-जाते दोनों को एक राक्षस मिलता हे।

राक्षस बहुत ही बड़ा वह भयानक था, उसने राजन की धर्म पत्नी को खाने की वह राजा को धमकी देता है। राक्षस ने राजा से कहा, “अगर आपको अपनी धर्मपत्नी रानी को बचाना चाहते हे तो सात दिवस के अंदर एक शूद्रब्राह्मण के बेटे की बलि देनी होगी , जो वह स्वयं की मर्जी से मुझे समर्पित कर दे और उस बच्चे की बलि के समय उसके माता-पिता उसको अपने हाथ से पकडे रहे।”राजन तो बहुत डरा हुआ था और उसी डर के कारण उसने उस भयानक राक्षस की स्वीकार कर ली। राजन उस बात से डरते हुए अपने राज्य महल में पहुंचा और अपनी राज्य सभा मे वह बात मंत्रीयो को सारी बताई।

एक मंत्री ने राजन की पूरी बात ध्यान से सुनते हुए राजन को विश्वास दिलाया और कहा, “आप इतनी चिंता मत करो, मैं कुछ इस बात का उपाय करता हूं।”फिर उस मंत्री ने एक उपाय सोचा उसने एक सात साल के बच्चे की मूर्ति बनवाई और उसको बहुत ही सोने के गहने और अच्छे कपड़े पहनाएं। उसके बाद उस मंत्री ने मूर्ति को अपने राज्य के सभी गांव-गांव और आस-पास के सभी राज्यों में भी उसकी सवारी निकाली ओर घुमवाया। मंत्री ने साथ ही यह भी सूचना दि कि अगर किसी शूद्रब्राह्मण का सात वर्ष का बेटा अपनी स्वयं की मर्जी से बलि देगा और उस बलि के समय उसके माता-पिता अपने बच्चे के हाथ-पैर पकड़ रखेगे, उस बच्चे वह माता पिता को यह मूर्ती मिलेगी और साथ ही पास के सौ गांव भी साथ मे दिए जायेगे।

कहानी बालक क्यों हंसा

यह खबर गाँव में जेसे ही आती हे तब एक शूद्रब्राह्मण का बेटा यह बात जान कर राजी हो गया। उसने जाकर अपने माता-पिता से बोला, “आपको सो बेटे ओर मिल जाएंगे, अगर मेरे बलि देने से राजन का भला हो रहा हो और आप की गरीबी भी हमेशा के लिये खत्म हो जाएगी।” माता-पिता ने उसे बहुत समझाया काफी मना भी किया, लेकिन बेटा अपनी जिद पकड़ कर अड़ा रहा और अंत में माता-पिता ने हार मान कर उसकी बात मान लिया।शूद्रब्राह्मण माता-पिता अपने बेटे को लेकर राजन के पास गए। राजन उन सभी को लेकर उस भयानक राक्षस के पास जाता है। राक्षस की कई गई बात के अनुसार, राजन उस सात साल के बच्चे की बलि के लिए तैयार हो गया और बलि के समय बच्चे के माता-पिता ने उस बच्चे के हाथ पाव पकड़े।

राजन ने बच्चे को जैसे ही मारने के लिए अपनी तलवार उठाई, बच्चा उसी समय जोर से हंस पड़ता है।इतना बात सुनाते ही बेताल ने कहानी को बीच में ही रोक दी और राजा विक्रमादित्य से हर कहानी की तरह बीच मे एक सवाल पूछ बैठा , “बताओ राजा विक्रम शूद्रब्राह्मण का बच्चा क्यों हंसा ?”राजन विक्रम ने उसे जवाब देते हुए बोला, “शूद्रब्राह्मण का बालक हंसा इसलिए की जब भी कोई इंसान डरता है तो वह पहले अपने माता-पिता को याद करता है। माता-पिता नहीं हो तो इंसान अपने बड़े किसी इंसान को मदद के लिए कहता है।

अगर कोई मदद न करे तो इंसान भगवान को याद करता है, लेकिन यहां बेटे की मदद के लिए कोई भी नहीं था। उसके माता-पिता ने बच्चे के हाथ पकड़ रखे हुए थे, राजन हाथ में तलवार लिए और राक्षस उसे खाने के लिए तैयार खड़ा था। बालक और की भलाई के लिए बलि दे रहा था और इसी कारण हंसा ।”राजा का सही जबाव सुन के बेताल प्रसन्न हो गया और उसने राजन की तारीफ की। फिर हर बार की वह जगल की तरफ उड़कर पेड़ पर जाकर हमेशा उल्टा लटक जाता हे ।

विक्रम बेताल की कहानी – बालक क्यों हंसा कहानी से सीख:

इंसान को अपनी मुसीबत के समय सामना अकेले ही करना होता है। चाहे जीतने भी लोग आसपास रहें।

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