विक्रम बेताल की तीसरी कहानी: सबसे बड़ा बलिदान किसका?

विक्रम बेताल की कहानी: बड़ा बलिदान किसका - बेताल पच्चीसी
विक्रम बेताल की कहानी: बड़ा बलिदान किसका - बेताल पच्चीसी

सबसे बड़ा बलिदान किसका?
हर बार की तरह महाराज फिर से उस बेताल को पेड़ से उतारकर अपने साथ लेकर उसे चल पड़ते हैं ऐसे में बेताल महाराज को बोलने पर मजबूर करने के लिए फिर से उन्हें एक कहानी सुनाना चालू कर देता है और वह कहानी है राजा दीपसेन और उसके अंगरक्षक धर्मवीर की।

विदर्भ राज में एक दीपसेन नाम का एक राजा राज करता था राजा बड़ा दयालु था और उसकी इस वजह से विदर्भ राज्य मैं नहीं बल्कि पूरे आसपास के सभी राज्य मैं उसकी प्रशंसा की जाती थी एक दिन उसके दरबार में एक धर्मवीर नाम का आदमी काम करने के लिए आता है और राजा से कहता है कि मुझे काम की जरूरत है और मैं आपका रक्षक बनकर सेवा करना चाहता हूं।

धर्मवीर की बात सुनकर राजा कहता है कि- मै आपको अपना रक्षक बना सकता हूं लेकिन आपको अपनी अंगरक्षक होने की प्रमाण देनी होगी। कार्यकुशलता साबित करनी होगी और मैं निर्णय ले सकु की मेरे रक्षक बने लायक हो या नहीं।

राजा की बात सुनकर धर्मवीर अपनी योगिता दिखाता है और अपनी बाहुबल के साथ शस्त्र कौशल भी प्रदर्शित करता है धर्मवीर की सभी योग्यताओं को देख कर राजा उसे अपना रक्षक बनाने का निर्णय लेता है और धर्मवीर से पूछता है कि तुम्हें रोज अपने खर्च के लिए क्या चाहिए?

राजा के इस प्रश्न पर धर्मवीर बोलता है कि- महाराज मुझे अपने खर्च के लिए प्रतिदिन हजार स्वर्ण मुद्राएं दे देना। राजा ने एक नजर धर्मवीर की ओर देखकर उसे पूछा “तुम्हारे घर परिवार में कितने सदस्य है”?
धर्मवीर जवाब देता है महाराज मेरे परिवार में हम चार सदस्य हैं एक बेटा वह बेटी और मेरी धर्मपत्नी और मैं हूं।
धर्मवीर के बताने के बाद राजा अपने मन में विचार करता है कि इसके परिवार में भरण पोषण के लिए इतनी स्वर्ण मुद्राएं की क्यों आवश्यकता है। राजा कुछ विचार करके उसे बताई गई रोज खर्च की बात मान जाता है और उसे कहता है कि आपका काम यह है कि हर रोज रात को मेरी सुरक्षा के लिए मेरे कक्ष के बाहर आपको निगरानी करनी है।

विक्रम बेताल की कहानी भाग 3

राजा यहां पता लगाना चाहता था कि धर्मवीर जितनी स्वर्ण मुद्राएं का क्या करेगा। उसने धर्मवीर को स्वर्ण मुद्राएं देखकर रात में अपनी हाजरी देने को कहा। राजा ने अपने गुप्तचर को धर्मवीर के पीछे लगा दिया। धर्म वीर अपनी चाही गई खर्च पाकर खुश था।

धर्मवीर स्वर्ण मुद्राएं लेकर खुशी से अपने घर चल देता है घर जाकर वह कुछ स्वर्ण मुद्राएं शुद्ध ब्राह्मणों को दे देता है। और बाकी स्वर्ण मुद्राएं दो भागों में बांट देता है एक हिस्सा गरीबों को और साधु और मेहमानों को बांट देता हैं।

और बाकी स्वर्ण मुद्राओं से अनाज मंगाता है और उससे भोजन बनाता है भोजन बनने के बाद उसको लेकर पहले अपने रहने वाले निर्धन लोगों को खाना खिलाता है बचे हुए भोजन से उसका परिवार भोजन करता है और सब मिल बांट कर भोजन करते हैं।

धरम वीर की निगरानी कर रहे गुप्तचर सब नजारा अपनी आंखों से देख कर राजा के पास जाते हैं और राजा को पूरी कहानी बताते हैं राजा यहां जानकर बहुत खुश होता है कि धर्मवीर ने अपने शान मुद्राओं का सही जगह उपयोग किया है अब राजा पता लगाता है कि धर्म वीर अपना काम सही करता है यहां नहीं?

धर्मवीर श्याम को सूरज ढलते ही अपने काम के लिए महल में जाता है और राजा के कक्ष के बाहर पहरेदारी करने के लिए खड़ा रहता है। राजा सोते नहीं है और पूरी रात जाकर देखते हैं कि धर्मवीर अपना काम कर रहा है कि नहीं और राजा देखते हैं कि अपना काम पूरी इमानदारी से कर रहा होता है धनवीर की इस काम को देख कर राजा बहुत खुश होते हैं।

धर्मवीर हर रोज शाम होते ही महाल में पहुंच जाता है और अपना काम करता है जब भी महाराज को किसी भी चीज की आवश्यकता होती है तो धर्मवीर हमेशा उनकी सेवा में तत्पर रहता है। देखते देखते काफी समय हो जाता है । एक दिन रात में एक घटना व्यतीत होती है। महाराज ने मध्य रात्रि को किसी महिला की रोने की आवाज सुनाई पड़ती है।

रोने की आवाज सुनकर राजा सोचते हैं कि यह रोने की आवाज कहां से आ रही है और राजा हैरान होते हैं। राजा धर्मवीर को बुलाते हैं और कहते हैं कि पता करो कि रोने की आवाज कहां से आ रही है और कौन रो रहा है। साथ ही इस बात का पता करो कि वह रो क्यों रही है।

धर्मवीर राजा की बात सुनकर वहां से तुरंत निकल जाता है उसका पता करने राजमहल से बाहर थोड़ी दूर धर्मवीर को एक औरत दिखाई देती है। औरत अपने पूरे शरीर पर गहने पहनें खड़ी है।वह औरत कभी नृत्य गान करती है और कभी अपना सर नीचे जमीन पर लगाती है और रोती है। धर्मवीर यह सब कुछ देखता है और उसे पूछता है कि आप ऐसा क्यों कर रही है बताओ।

धर्मवीर के पूछने पर औरत कहती है की- मैं लक्ष्मी हूं और इसलिए रो रही हूं महाराज की जल्द ही अकाल मृत्यु होने वाली है और उनकी जन्म कुंडली में अकाल मृत्यु लिखी हुई है। अब राजा के जैसा न्याय करने वाला और दयालु राजा चला जाएगा तो मुझे किसी और के सानिध्य में रहना पड़ेगा इसलिए मैं दुखी हूं और रो रही हूं।
महाराज की मृत्यु की बात सुनकर धनवीर लक्ष्मी से पूछता है कि इस मुसीबत का निवारण का कोई उपाय है क्या। लक्ष्मी बोलती है कि निवारण तो है पर आप कर पाओगे । धर्मवीर बोलता है आप मुझे बताओ मैं अवश्य करूंगा मेरे से हो पाया तो मुझसे जो भी बनेगा मैं करूंगा।

धर्मवीर के बोलते ही लक्ष्मी जी बोलते हैं कि “पश्चिम दिशा में एक माता का मंदिर है अगर माता के मंदिर में तू अपने बेटे की बली उनके चरणों में अर्पित कर देता है तो आने वाला संकट चल जाएगा। उसके बाद राजा वर्षों तक बिना किसी भी तकलीफ से जीवित रहेंगे और राज्य कर पाएंगे।

यह बात सुनकर धर्म वीर अपने घर की ओर निकल पड़ता है और घर जाकर अपनी धर्मपत्नी को उठाकर उसे पूरी बात बताता है इतने में उसका बेटा और बेटी भी नींद से उठ जाता है। जब इस बात का पता उसके बेटे को लगता है तो वह अपनी खुशी खुशी से मां के चरणों में अपनी बलि चढ़ने के लिए तैयार हो जाता है।

सबसे बड़ा बलिदान किसका भाग 3

धर्मवीर का बेटा कहता है। “कि सबसे पहले आपकी आज्ञा, दूसरा अपने महाराज का जीवन बचाना, और बाद मां देवी के चरणों में अपना जीवन त्याग, इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा पिताश्री। आप चलिए और मैं साथ चलता हूं”
अपने बेटे की बात सुनकर उसका परिवार साथ में चलते हैं और मां देवी के मंदिर में जाते हैं। मंदिर में जाने के बाद धर्मवीर अपनी तलवार निकालकर कहता है की मां यह बली आप स्वीकार करो और मेरे राजा को एक लंबी आयु प्रदान करो” और इतना कहते ही बेटे का सर धड़ से अलग कर देता है।

अपने भाई की मौत पर उसकी बहन भी माता के चरणों में अपना सीट पटक-पटक कर जान दे देती है। अपने बेटा और बेटी की मौत की बात धर्मवीर की पत्नी करती है कि- दोनों को खोने के बाद अब मेरे पास कुछ नहीं है मैं जी कर भी क्या करूंगी और इतना कहते ही अपने पति के हाथ से तलवार छीन कर अपना सर मां के चरणों में न्योछावर कर देती है।

अपनी धर्मपत्नी की मृत्यु के बाद धर्मवीर सोचता है कि अब मेरा जिना किस काम का है जब मेरा परिवार नहीं है और मैं अकेला हूं और यह सोचते ही सामने पड़ी तलवार को लेकर मैं अपना खुद का सर अलग कर देता है।
जब इस बात का पता राजा को लगता है तो वह उसी समय मां देवी के मंदिर में चलते हैं और वह सारा नजारा अपनी आंखों से देखकर बहुत दुखी होते हैं और सोचते हैं कि मेरे प्राण बचाने के लिए इन मासूम 4 लोगों ने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी ऐसे में मुझे धिक्कार है और मेरे राजा होने पर भी और मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं है। इतना मन में विचार आते ही राजा अपनी तलवार निकालते हैं और अपनी गर्दन को काटते हैं तभी मां देवी अवतार लेती है।

मां देवी कहती है, ” महाराज मैं आपके फैसले से प्रसन्न हूं। आप जो भी मांगोगे आपको अवश्य मिलेगा जो भी मांगना है “।

मांदेवी की बात सुनकर राजा देवी मां से कहता है, मां आप धर्मवीर और उसके परिवार को जीवित कर दो। मां धर्मवीर उसके परिवार को जीवित कर देती है। इतनी बात बता कर बेताल कहता है, बताओ विक्रमादित्य, सबसे बड़ा बलिदान इन सब में किसका है?

विक्रमादित्य चुप रहते हैं लेकिन बेताल कहता है कि जल्दी बताओ वरना आपकी गर्दन उड़ा दूंगा।
विक्रमादित्य बोलते हैं, राजा का बलिदान इन सब में बड़ा है।

बेताल बोलता है राजा का कैसे हुआ?

विक्रमादित्य बोलते हैं सुनो, ” आज्ञा का पालन करना पुत्र का परम धर्म होता है। राजा की सेवा करना और उसके लिए अपने प्राण देना रक्षक का कर्म है। और राजा अपने रक्षक के लिए अपने प्राण देता है तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। और सबसे बड़ा बलिदान राजा का है।”

विक्रमादित्य से यह बात सुनकर बेताल कहता है आपने सही कहा। ” आप एक बात भूल गए मैंने क्या कहा था आप बोले तो मैं चला” और बेताल फिर से उड़कर पेड़ पर जाकर लटक लगता है।

सबसे बड़ा बलिदान किसका? कहानी से सीख मिलती है:

एक सच्चा राजा वह होता है जो अपनी राज्य की प्रजा के लिए हमेशा तत्पर और उनकी सेवा के लिए हमेशा समर्पित रहता है और अपनी जान देने को भी तैयार रहता है।

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