महाभारत की पूरी कहानी का इतिहास जानकर आप दंग रह जाएंगे | Mahabharat full story in hindi

“महाभारत” क्या नाम हे। सुनने से हमे और हमारे मन में पता नहीं क्या विचार आते हे आपको भी आते होंगे। महाभारत नाम क्यू और कैसे पड़ा हम इस लेख में पूरा वर्णन करेंगे। महाभारत भारत का प्रसिद्ध धार्मिक, पौराणिक और दार्शनिक ग्रंथ है। यह हिन्दू धर्म के श्रेष्ठ ग्रंथों में एक है।

यह संसार का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ है, इसे साहित्य की सबसेप्रसिद्ध अनुपम कृतियों मे माना जाता है। हिन्दू पुराणिक मान्यताओं के अनुसार पौराणिक संदर्भो एवं महाभारत के अनुसार इस काव्य के रचनाकार महर्षी वेदव्यास जी को माना जाता हे और इसे लिखने का श्रेय भगवान महादेव के पुर्त्र गणेशजी को जाता है। इसे लिखने की भाषा संस्कृत थी।

इस काव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ने अपने इस प्रसिद्ध काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों का वर्णन किया हैं। इसके अतिरिक्त इस प्रसिद्ध काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा,ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी वर्णन पुरे उल्लेख के साथ किया गया हैं। महाभारत की विशालता और दार्शनिक बल्कि हिन्दू धर्म और वैदिक परम्परा का भी अंश है।

महाभारत महाकाव्य की विशालता महानता, सम्पूर्णता का वर्णन उसके प्रथम पर्व में लिखे श्लोक से लगाया जा सकता है, जिसकाअभिप्राय यह है की जो (महाभारत महाकाव्य में) है वह आपको इस जगत में कहीं न कहीं अवश्य मिल जायेगा, जो यहाँ नहीं है वो इस जगत संसार में आपको कही नहीं मिलेगा।

महाभारत की कहानी और पुराना इतिहास

यह प्राचीन महाभारत महाकाव्य भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवान श्रीक़ृष्ण की पूरी भागवतगीता है। पूरे महाभारत में 1,10,000 श्लोक हैं। विद्वानों ने महाभारत महाकाव्य काल को लेकर विभिन्न तरह के अपने अपने मत दिए हैं, फिर भी महान विद्वान इस महाभारत महाकाव्य काल को ‘लौहयुग’ से जुड़ा हुआ मानते हैं।

ऐसा माना जाता है कि महाकाव्य महाभारत में वर्णित ‘कुरु वंश’ 1200 से 800 ईसा पूर्व के दौरान महाशक्ति के रूप में रहा होगा।यह महाकाव्यमहाभारत तीन नाम से प्रसिद हुआ। जय, भारत, व महाभारत इन नामों से प्रसिद्ध हैं।

महर्षिवेद व्यास जी ने सबसे पहले 1,00,000 श्लोकों की रचना के साथ ‘भारत’ नामक ग्रंथ की जिक्र किया। इसमें उन्होने बताया की भरतवंशियों के चरित्रों के साथ-साथ अन्य कई महान ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी राजाओं के उल्लेख करते हुए कई अन्य धार्मिक उल्लेख भी किये और इसके बाद महर्षिवेदव्यास जी ने 24,000 श्लोकों का उल्लेख करते हुए उपाख्यानों का केवल भरतवंशियों का उल्लेख करते हुए ‘भारत’ काव्य बनाया। इन दोनों काव्य रचनाओं में धर्म की अधर्म पर विजय होने के उपलक्ष में इन्हें ‘जय’ नाम से भी भी कहा जाने लगा।

Mahabharat full story in hindi

महाभारतमहाकाव्य में एक ऐसी कहानी आती है कि जब भगवान ने तराजू के एक तरफ में चारों “वेदों” को रखा और दूसरे तरफ पर ‘भारत ग्रंथ’ को रखा, तो सामने आया की ‘भारत ग्रंथ’ सभी वेदों की तुलना में सबसे अधिक भारी सिद्ध हुआ दिखा। अतः में ‘भारत’ ग्रंथ की इस महत्व की और ध्यान को देखकर सभीदेवताओं और ऋषियोंमुनियों ने इसे ‘महाभारत’ नाम दिया।

इस कथा के कारण सभी जगत के मनुष्यों में भी यह ‘महाभारतमहाकाव्य’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। महाभारतमहाकाव्य का लेखन’महाभारत’ में इस प्रकार का वर्णन सामने आया है।

महर्षिवेदव्यास जी ने हिमालय की एक पवित्र गुफ़ा में तपस्या में ध्यानमुग्ध स्थित होकर महाभारतमहाकाव्य’ की घटनाओं का स्मरण कर मन ही मन में महाभारतमहाकाव्य’ की रचना कर ली थी। परन्तु इसके बाद उनके सामने एक विकट समस्या आ पड़ी थी। कि इस महाभारतमहाकाव्य’ के अखंडज्ञान को सभी के तक कैसे पहुँचाया जाये,क्योंकि इसकी कठिनता और लम्बाई यह बहुत कठिन कार्य था कि इसे बिना किसी गलती किये लिख दे, जैसा वे उच्चारण करे बोलते जाएँ।

इसलिए जगतपिताब्रह्मा जी के कहने पर महर्षीवेदव्यासजी भगवान गणेशजी के पास गए।भगवान गणेशजी लिखने को तैयार हो गये, परन्तु उन्होंने एक प्रस्ताव किया कि एक बार कलम उठा लेने के बाद वह पूरा महाकाव्य समाप्त होने तक वे बीच में कभी रुकेंगे नहीं। महर्षीवेदव्यासजी जानते थे कि यह प्रस्ताव बहुत बड़ीसमस्या कठिनाइयाँ उत्पन्न कर सकता हैं।

अतः में उन्होंने भी अपनी बुद्धि का उपयोग कर चतुरता से एक प्रस्ताव रखा कि कोई भी श्लोक लिखने से पहले भगवान गणेशजी को उसका अर्थ समझना बताना होगा। भगवान गणेशजी ने यह शर्त स्वीकार कर ली। इस तरह महर्षीवेदव्यासजी बीच-बीच में कुछ कठिन श्लोकों को रचना कर देते थे।

जब भगवान गणेशजी उनके अर्थ पर विचारविमर्श कर रहे होते, उसी समय में ही महर्षी वेदव्यासजी कुछ और श्लोक की रचना कर देते थे। इस प्रकार पूरा सम्पूर्ण महाभारत महाकाव्य तीन वर्षों के समय के अन्तराल में लिखा गया था। सबसे पहले महर्षी वेदव्यासजी ने पुण्य कर्म जगत के कल्याण आदि पर एक लाख श्लोकों का उल्लेख कर भारत ग्रंथ बनाया। उसके बाद उल्लेखों को छोड़कर चौबीस हज़ार श्लोकों की ‘भारतसंहिता’ की रचना की। तत्पश्चात महर्षी वेदव्यासजी ने साठ लाख श्लोकों की एक दूसरी रचना कर एक और संहिता बनायी, जिसके तीस लाख श्लोक देवतलोक में, पंद्रह लाख पितृलोक में और तथा चौदह लाख श्लोक गन्धर्वलोक में समलित हुए। जगतलोक में एक लाख श्लोकों का उल्लेख किया।

महाभारत ग्रंथ की रचना सम्पूर्ण करने के बाद महर्षी वेदव्यासजी ने सर्वप्रथम अपने बेटे पुत्र शुकदेव को इस ग्रंथ का अध्ययन अनुवाद,शिक्षा, पड़ा कर कराया। महाभारत के प्रमुख पर्वमहाभारत के पुरे उल्लेख में मूलरचना में अठारह की संख्या का एक विशिष्ट योग है। कौरव व पाण्डव सेनाओं के मध्य हुए युद्ध का समय भी अठारह दिन का रहा था। दोनों और की सेनाओं का संख्याबल भी अठारह अक्षौहिणी था। इस महाभारत युद्ध के सूत्रधार भी अठ्ठारह थे। महाभारत की सम्पूर्ण ग्रन्थ को अठारह पर्वों में विभाजित किया गया है और ‘भीष्म पर्व’ केअंदर वर्णित श्रीमद भगवतगीता में भी अठारह अध्याय हैं।

सम्पूर्णमहाकाव्य अठारह पर्वों में विभाजित है। ‘पर्व’ का अर्थ है “गाँठ या जोड़”। सम्पूर्णमहाकाव्य कथा को उत्तरवर्ती कथा से जोड़ने के साथ महाभारत के विभाजन का यह नामकरण सभव है। इन महापर्वों का नामकरण, उस कथा के महत्त्वपूर्ण पात्र या घटना के आधार पर वर्णन किया गया है। मुख्य पर्वों में भी और छोटे बड़े कई पर्व हैं। इन महापर्वों का पुनर्विभाजन अलग अलग अध्यायों में किया गया है। महापर्वों और अध्यायों का महासमावेश और आकर अलग अलग और असमान है। कुछ पर्व बहुत बड़े और कुछ पर्व बहुत छोटे हैं। अध्यायों में भी श्लोकों की रचना की संख्या ऊपर निचे है। कुछ अध्यायों में पचास से भी कम श्लोक हैं और कुछ-कुछ में यह संख्या दो सौ से भी अधिक वह ज्यादा है।

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महाभारतमहाकाव्य’ के मुख्य अठारह महापर्व के नाम इस प्रकार हैं।

  1. आदि महापर्व
  2. सभा महापर्व
  3. वन महापर्व
  4. विराट महापर्व
  5. उद्योग महापर्व
  6. भीष्म महापर्व
  7. द्रोण महापर्व
  8. कर्ण महापर्व
  9. शल्य महापर्व
  10. सौप्तिक महापर्व
  11. स्त्री महापर्व
  12. शान्ति महापर्व
  13. अनुशासन महापर्व
  14. आश्वमेधिक महापर्व
  15. आश्रमवासिक महापर्व
  16. मौसल महापर्व
  17. महाप्रास्थानिक महापर्व
  18. स्वर्गारोहण महापर्व

इन सभी महापर्वों की सम्पूर्ण कहानियाँ हम अपने नये लेख में उल्लेख करेगे, और आप हम से जुड़े रहिये आप को नई कहानिया पडने का मौका मिलता रहेगा है।

इनसे एक ही जगह पर पढ़ पाएंगे आप महाभारत की सम्पूर्ण कहानियां

महाभारतमहाकाव्य की प्रमुख कथाओं के नाम

कुरुवंश की उत्पत्ति

महर्षि वेदव्यासजी के जन्म की कहानी

धृतराष्ट्र, पांडु व विदुर जन्म कथा

जगत के दानवीर कर्ण के जन्म की कथा

भीष्म के जन्म तथा अखण्ड प्रतिज्ञा की कथा

कर्ण की कथा

गुरुभक्ति एकलव्य की कथा

कर्ण-दुर्योधन के दोस्ती की कथा

द्रौपदी जन्म की कथा,

षड्यन्त्र लाक्षागृह की कथा

द्रौपदी स्वयंवर की कथा

पाण्डव-द्रौपदी के विवाह की कथा

इन्द्रप्रस्थ की स्थापना की कहानी

कौरवों की छल कपट की कथ

द्रौपदी का चीरहरण की कथा

युधिष्ठिर का संवाद

अर्जुन को दिव्यास्त्र प्राप्ति की कथा

युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन रक्षा

द्रौपदी हरण की कथा

भीम द्वारा जयद्रथ की दुर्गति की कथा

अज्ञातवास पाण्डवों का, कीचक वध

कौरवोँ का आक्रमण विराट नगर पर

शान्ति प्रस्ताव श्रीकृष्ण का

शुरूआत महाभारत युद्ध की

भीष्म-अभिमन्यु वध की कथा

वध की कथा घटोत्कच

जयद्रथ

गुरु द्रोण की

अर्जुन और कर्ण का महासंग्राम तथा कर्ण वध

भीम का महासंग्राम और दुर्योधन का वध,

जन्म कथा परीक्षित की

पाण्डवों का हिमालय की और प्रस्थान।

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गुरु रविदास जी का जीवन परिचय

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